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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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का भ्रमण करते है ।
[ १७६ ] सूर्य और चंद्र का उर्ध्व या अधो में संक्रमण नहीं होता, वे मंडल में सर्वाभ्यन्तर-सर्वबाह्य और तीर्छा संक्रमण करते है ।
[१७७] सूर्य, चंद्र, नक्षत्र और महाग्रह के भ्रमण विशेष से मनुष्य के सुख-दुःख होते है ।
[१७८] सूर्य-चंद्र के सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश के समय नित्य तापक्षेत्र की वृद्धि होती है और उनके निष्क्रमण से क्रमशः तापक्षेत्र में हानि होती है । [ १७९] सूर्य-चंद्र का तापक्षेत्र मार्ग कलंबपुष्प के समान है, अंदर से संकुचित और -बाहर से विस्तृत होता है ।
[१८०] चंद्र की वृद्धि और हानि कैसे होती है ? चंद्र किस अनुभाव से कृष्ण या प्रकाशवाला होता है ।
[१८१] कृष्णराहु का विमान अविरहित - नित्य चंद्र के साथ होता है, वह चंद्र विमान से चार अंगुल नीचे विचरण करता है ।
[१८२] शुक्लपक्ष में जब चंद्र की वृद्धि होती है, तब एक एक दिवस में बासठ बासठ भाग प्रमाण से चंद्र उसका क्षय करता है ।
[१८३] पन्द्रह भाग से पन्द्रहवे दिन में चंद्र उसका वरण करता है और पन्द्रह भाग से पुनः उसका अवक्रम होता है ।
[१८४] इस तरह चंद्र की वृद्धि एवं हानि होती है, इसी अनुभाव से चंद्र काला या प्रकाशवान् होता है ।
[१८५ ] मनुष्यक्षेत्र के अन्दर उत्पन्न हुए चंद्र-सूर्य ग्रहगणादि पंचविध ज्योतिष्क भ्रमणशील होते है |
[१८६] मनुष्य क्षेत्र के बाहिर के चंद्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र तारागण भ्रमणशील नहीं होते, वे अवस्थित होते है ।
[१८७] इस प्रकार जंबूद्वीप में दो चंद्र, दो सूर्य उनसे दुगुने चार-चार चंद्र-सूर्य लवण समुद्र में, उनसे तीगुने चंद्र-सूर्य घातकीखण्ड में है ।
[१८८] जंबूद्वीप में दो, लवणसमुद्र में चार और घातकीखंड में बारह चंद्र होते है ।
[१८९] घातकी खण्ड से आगे-आगे चंद्र का प्रमाण तीनगुना एवं पूर्व के चंद्र को मिलाकर होता है । (जैसे कि - कालोसमुद्र है, घातकी खण्ड के बारह चंद्र को तीनगुना करने से छत्तीस हुए उनमें पूर्व के लवण समुद्र के चार और जंबूद्वीप के दो चंद्र मिलाकर बयालीस हुए ।
[१९०] यदि नक्षत्र, ग्रह और तारागण का प्रमाण जानना है तो उस चंद्र से गुणित करने से वे भी प्राप्त हो शकते है ।
[१९१] मनुष्य क्षेत्र के बाहिर चंद्र-सूर्य अवस्थित प्रकाशवाले होते है, चंद्र अभिजीत नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से युक्त रहता है ।