Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 225
________________ २२४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भाग तथा बांसठवे भाग के पचपन सडसठांश भाग प्रमाण है । अहोरात्र युग प्रमाण अडतीस अहोरात्र एवं दश मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के चार बासठांश भाग तथा बासठवें भाग के बारह सडसटांश भाग है । इसका मुहूर्त प्रमाण ११५० मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के चार बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके बारह चूर्णिका भाग है । रात्रिदिन का प्रमाण १८३० है, तथा ५४९०० मुहूर्त प्रमाण । [१०६] एक युग में साठ सौरमास और बासठ चांद्रमास होते है । इस समय को छह गुना करके वारह से विभक्त करने से त्रीस आदित्य संवत्सर और इकतीस चांद्र संवत्सर होते है। एक युग में साठ आदित्य मास, एकसठ ऋतु मास, बासठ चांद्रमास और सडसठ नक्षत्र मास होते है और इसी प्रकार से साठ आदित्य संवत्सर यावत् सडसठ नक्षत्र संवत्सर होते है । अभिवर्धित संवत्सर सत्तावन मास, सात अहोरात्र ग्यारह मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के तेइस बासठांश भाग प्रमाण है, आदित्य संवत्सर साठ मास प्रमाण है, ऋतु संवत्सर एकसठ मास प्रमाण है, चांद्र संवत्सर बासठ मास प्रमाण है और नक्षत्र संवत्सर सडसठ मास प्रमाण है । इस समय को १५६ से गुणित करके तथा बार से विभाजित करके अभिवर्धित आदि संवत्सर का प्रमाण प्राप्त होता है । [१०७] निश्चय से ऋतु छह प्रकार की है-प्रावृट्, वर्षारात्र, शरद, हेमंत, वसंत और ग्रीष्म । यह सब अगर चंद्रऋतु होती है तो दो-दो मास प्रमाण होती है, ३५४ अहोरात्र से गीनते हुए सातिरेक उनसाठ-उनसाठ रात्रि प्रमाण होती है । इसमें छह अवमरात्र-क्षयदिवस कहे है-तीसरे, सातवें ग्यारहवें, पन्द्रहवें-उन्नीसवें और तेइस में पर्व में अवमरात्रि होती है । छह अतिरात्र-वृद्धिदिवस कहे है जो चौथे-आठवें-बारहवें-सोलहवे-बीसवें और चौबीसवें पर्व में होता है । [१०८] सूर्यमास की अपेक्षा से छह अतिरात्र और चांद्रमास की अपेक्षा से छह अवमरात्र प्रत्येक वर्ष में आते है । [१०९] एक युग में पांच वर्षाकालिक और पांच हैमन्तिक ऐसी दश आवृत्ति होती है । इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम वर्षाकालिक आवृत्ति में चंद्र अभिजीत नक्षत्र से योग करता है, उस समय में सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, पुष्य नक्षत्र से उनतीस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के तेयालीस बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तेतीस चूर्णिका भाग प्रमाण शेष रहता है तब सूर्य पहली वर्षाकालिक आवृत्ति को पूर्ण करता है । दुसरी वर्षाकालिकी आवृत्ति में चंद्र मृगशिरा नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, तीसरी वर्पाकालिकी आवृत्ति में चंद्र विशाखा नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, चौथी में चंद्र रेवती के साथ और सूर्य पुष्य के साथ ही योग करता है, पांचवी में चंद्र पूर्वाफाल्गुनी के साथ और पुष्य के साथ ही योग करता है | पुष्य नक्षत्र गणित प्रथम आवृत्ति के समान ही है, चन्द्र के साथ योग करनेवाले नक्षत्र गणित में भिन्नता है वह मूलपाठ से जान लेना चाहिए । [११०] इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र हस्तनक्षत्र से और सूर्य उत्तराषाढा नक्षत्र से योग करता है, दुसरी हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र शतभिषा

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