Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 227
________________ २२६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद निष्क्रम्यमान चंद्र पूर्णिमा में प्रवेश करता हुआ गमन करता है । प्रथम अयन से दक्षिण भाग की तरफ से प्रवेश करता हुआ चंद्र सात अर्धमंडल में गमन करता है, वह सात अर्द्धमंडल हैदुसरा, चौथा, छठ्ठा, आठवां, दसवां, बारहवां और चौदहवां । प्रथम अयन में गमन करता हुआ चंद्र पूर्वोक्त मंडलो में उत्तर भाग से आरंभ करके अन्तराभिमुक प्रवेश करके छह मंडल और सातवें मंडल का तेरह सडसठांश भाग में प्रवेश करके गमन करता है, यह छह मंडल हैतीसरा, पांचवां, सातवां, नववां, ग्यारहवा और तेरहवां एवं पन्द्रहवें अर्धमंडल में वह तेरह सडसठांश भाग गमन करता है । चंद्र का यह पहला अयन पूर्ण हुआ । जो नक्षत्र अर्धमास है वह चंद्र अर्धमास नहीं है और जो चंद्र अर्धमास है वह नक्षत्र अर्धमास नहीं है फिर नाक्षत्र अर्धमास का चंद्र चंद्र अर्धमास में तुल्य समय में कैसे गमन करता है ? एक अर्धमंडल में गमन करके चारसठ्यंश भाग एवं एकतीश सडसठांश भाग से छेद करके नव भाग से गमन करता है । दुसरे अयन में गमन करता चंद्र पूर्व भाग से निकलकर सात चोपन जाकर अन्य द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, सात तेरह जाकर फिर अपने द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, पश्चिम भाग से निकलकर छ-चौप्पन जाकर दुसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में और फिर छ तेरह जाकर स्वयंचिर्ण मार्ग में गमन करता है, दो तेरह जाकर कोई असामान्य मार्ग में गमन करता है। उस समय सर्व अभ्यंतर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में गमन करता है तब दो तेरह जाकर चंद्र किसी असामान्य मार्ग में स्वयमेव प्रवेश करके गमन करता है इस तरह दुसरा अयन पूर्ण होता है । चंद्र और नक्षत्र मास एक नहीं होते फिरभी तुल्य समय में चंद्र कैसे गमन करता है ? वह दो अर्द्धमंडल में गमन करते हुए आठ सडसठांश भाग अर्द्ध मंडल को इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अठ्ठारहवे भाग में द्वितीय अयन में प्रवेश करता हुआ चंद्र पश्चिम भाग से प्रवेश कस्ता हुआ अनन्तर बाह्य पश्चिम के अर्द्धमंडल के एकचालीस सडसठांश भाग जाकर स्वयं अथवा दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करके तेरह सडसठांश भाग जाकर दुसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर स्वयं या परचिर्ण मार्ग में गमन करता है, इस तरह अनंतर ऐसे बाह्य पश्चिम मंडल को समाप्त करता है । तीसरे अयन में गया हुआ चंद्र पूर्व भाग से प्रवेश करते हुए बाह्य तृतीय पूर्व दिशा के अर्धमंडल को एकचालीश सडसठांश भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सड़सठांश भाग जाकर दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है इतने में बाह्य तृतीयपूर्वीय मंडल समाप्त हो जाता है । वह तीसरे अयन को पूर्ण करके चंद्र पश्चिम भाग से बाह्य के चौथे पश्चिमी अर्द्धमंडल में आठ सडसठांश भाग के इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अठारह भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चीर्ण मंडल में गमन करता है यावत् पूर्वोक्त गणित से बाह्य चौथा पश्चिमी अर्धमंडल को समाप्त करता है । इस प्रकार चंद्रमास में चंद्र चोप्पन भाग के तेरह भाग में दो तेरह भाग जाकर परचीर्ण मंडल में गमन करके, तेरह तेरह भाग जाकर स्वयं चीर्ण मंडल में गमन करके यावत् इसी तरह प्रतिचीर्ण करता है, यह हुआ चन्द्र का अभिगमन-निष्क्रमण-वृद्धि

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