Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 212
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति - १०/२/४७ उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । • [४८] इन अठ्ठावीश नक्षत्रो में सूर्य के साथ योग करनेवाले नक्षत्र भी है । एक नक्षत्र ऐसा है जो सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त तक योग करता है अभिजित; छह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ छह अहोरात्र एवं इक्किस मुहूर्त पर्यन्त योग करते है-शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा, पन्द्रह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त पर्यन्त योग करते है -श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगसिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढा; छह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ बीस अहोरात्र एवं तिन मुहूर्त्त तक योग करते है- उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । २११ प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- ३ [४९] हे भगवंत्! अहोरात्र के भाग सम्बन्धी नक्षत्र कितने है ? इन अठ्ठाइस नक्षत्रो में छह नक्षत्र ऐसे है जो पूर्वभागा तथा समक्षेत्र कहलाते है, वे तीश मुहूर्त्त वाले होते है - पूर्वाप्रोष्ठपदा, कृतिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल और पूर्वाषाढा, दश नक्षत्र ऐसे है जो पश्चातभागा तथा समक्षेत्र कहलाते है, वे भी तीश मुहूर्त्तवाले है- अभिजित्, श्रवण, घनिष्टा, रेवती, अश्विनी, मृगशिर, पुष्य, हस्त, चित्रा और अनुराधा, छह नक्षत्र नक्तंभागा अर्थात् रात्रिगत तथा अर्द्धक्षेत्र वाले है, वे पन्द्रह मुहूर्त वाले होते है - शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा, छह नक्षत्र उभयंभागा अर्थात् दोढ क्षेत्र कहलाते है, वे ४५ मुहूर्तवाले होते है - उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसू, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत-४ [५० ] नक्षत्रो के चंद्र के साथ योगका आदि कैसे प्रतिपादित किया है ? अभिजीत् और श्रवण ये दो नक्षत्र पश्चात् भागा समक्षेत्रा है, वे चन्द्रमा के साथ सातिरेक ऊनचाली मुहूर्त योग करके रहते है अर्थात् एक रात्रि और सातिरेक एक दिन तक चन्द्र के साथ व्याप्त रह कर अनुपरिवर्तन करते है और शामको चंद्र धनिष्ठा के साथ योग करता है । घनिष्ठा नक्षत्र पश्चात् भाग में चंद्र के साथ योग करता है वह तीश मुहूर्त पर्यन्त अर्थात् एकरात्रि और बाद में एक दिन तक चन्द्रमा के साथ योग करके अनुपरिवर्तित होता है तथा शामको शतभिषा के साथ चन्द्र को समर्पित करता है । शतभिषानक्षत्र रात्रिगत तथा अर्द्धक्षेत्र होता है वह पन्द्रह मुहूर्त तक अर्थात् एक रात्रि चन्द्र के साथ योग करके रहता है और सुबह में पूर्व प्रोष्ठपदा को चंद्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है । पूर्वप्रौष्ठपदा नक्षत्र पूर्वभाग- समक्षेत्र और तीश मुहूर्त्त का होता है, वह एक दिन और एकरात्रिचन्द्र के साथ योग करके प्रातः उत्तराप्रोष्ठपदा को चन्द्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है । उत्तराप्रोष्ठपदा नक्षत्र उभयभागा- देढ क्षेत्र और पंचचत्तालीश मुहूर्त का होता है, प्रातः काल में वह चन्द्रमां के साथ योग करता है, एक दिन एक रात और दुसरा दिन चन्द्रमां के साथ व्याप्त रहकर शामको रेवती नक्षत्र के साथ चन्द्र को समर्पित करके अनुपरिवर्तित होता है । रेवतीनक्षत्र पश्चात्भागा- समक्षेत्र और तीश मुहूर्तप्रमाण होता है, शामको चन्द्र के साथ

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