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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- ९
[ ५६ ] ताराओ का प्रमाण किस तरह का है ? इस अट्ठाइस नक्षत्रो में अभिजीत् नक्षत्र के तीन तारे है । श्रवणनक्षत्र के तीन, घनिष्ठा के पांच, शतभिषा के सौ, पूर्वा-उत्तरा भाद्रपद के दो, रेवती के वत्रीश, अश्विनी के तीन, भरणी के तीन, कृतिका के छ, रोहिणी के पांच, मृगशिर्ष के तीन, आर्द्रा का एक पुनर्वसु के पांच, पुष्य के तीन, अश्लेषा के छह, मघा के सात, पूर्वा-उत्तरा फाल्गुनी के दो, हस्त के पांच, चित्रा का एक स्वाति का एक, विशाखा के पांच, अनुराधा के चार, ज्येष्ठा के तीन, मूल का एक और पूर्वा तथा उत्तराषाढा नक्षत्र के चार-चार ताराए होते है ।
प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- १०
[ ५७ ] नक्षत्ररूप नेता किस प्रकार से कहे है ? वर्षा के प्रथम याने श्रावण मास को कितने नक्षत्र पूर्ण करते है ? चार, उत्तराषाढा, अभिजीत, श्रवण और घनिष्ठा । उत्तराषाढा चौदह अहोरात्र से, अभिजीत सात अहोरात्र से, श्रवण आठ और घनिष्ठा एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर श्रावण मास को पूर्ण करते है । श्रावण मास में चार अंगुल पौरुषीछाया से सूर्य वापिस लौटता है, उसके अन्तिमदिनो में दो पाद और चार अंगुल पौरुषी होती है ।
इसी प्रकार भाद्रपद मास को घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा तथा उत्तराभाद्रपद समाप्त करते है, इन नक्षत्र के क्रमशः अहोरात्र चौद, सात, आठ और एक है, भाद्रपद मास की पौरुषीछाया आठ अंगुल और चरिमदिन की दो पाद और आठ अंगुल । आसो मास को उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्विनी नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुपी छाया प्रमाण बारह अंगुल और अन्तिमदिन का तीन पाद । कार्तिक मास को अश्विनी, भरणी और कृतिका क्रमशः चौद, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषी छाया प्रमाण सोलह अंगुल और अन्तिमदिन का तीनपाद चार अंगुल । हेमन्त के प्रथम याने मागशिर्ष मास को कृतिका, रोहिणी और संस्थान (मृगशिर्ष ) नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर पूर्ण करते है, मागशिर्ष मास की पौरुषीछाया का प्रमाण है वीस अंगुल और उसके अन्तिम दिन का पौरुपीछाया प्रमाण त्रिपाद एवं आठ अंगुल है । पौष मास को मृगशिर्प, आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य क्रमशः चौद, सात, आठ और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुपी छाया प्रमाण चौबीस अंगुल और अन्तिम दिन का चारपादा माघ मास को पुष्य, आश्लेषा और मघा नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुपीछाया प्रमाण वीस अंगुल और अन्तिम दिन का त्रिपाद - आठ अंगुल । फाल्गुन मास को मघा, पूर्वा और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषीछाया प्रमाण सोल अंगुल और अन्तिम दिन का त्रिपाद एवं अंगुल ।
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ग्रीष्म के प्रथम याने चैत्र मास को उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर पूर्ण करते है, चैत्र मास की पौरुपी छाया का प्रमाण बारह अंगुल का है और उसके अन्तिम दिन में त्रिपाद प्रमाण पौरुपी होती है ।