Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 218
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति-१०/१६/७४ २१७ कात्यायन, हस्त का कौशिक, चित्रा का दर्भियायन, स्वाति का चामरच्छायण, विशाखा का श्रृंगायन, अनुराधा का गोलव्वायण, ज्येष्ठा का तिष्यायन, मूल का कात्यायन, पूर्वाषाढा का वात्स्यायन और उत्तराषाढा नक्षत्र का व्याघ्रायन गोत्र कहा गया है । प्राभृत- १०- प्राभृतप्राभृत- १७ [७५] हे भगवन् ! नक्षत्र का भोजना किस प्रकार का है ? इन अठ्ठाइस नक्षत्रो में कृतिका नक्षत्र दहिं और भात खाकर, रोहिणी - धतुरे का चूर्ण खाके, मृगशिरा - इन्द्रावारुणि चूर्ण खाके, आर्द्रा- मक्खन- खाके, पुनर्वसू-घी खाके, पुष्य - खीर खाके, अश्लेषा - अजमा का चूर्ण खाके, मघा कस्तुरी खाके, पूर्वाफाल्गुनी-मंडुकपर्णीका चूर्ण खाके, उत्तराफाल्गुनी - वाघनखी का चूर्ण खाके, हस्त- चावलकी कांजी खाके, चित्रा-मगकी दाल खाके, स्वाति - फल खाके, विशाखाअगस्ति खाके, अनुराधा - मिश्रिकृत कुर खाके, ज्येष्ठा-बोर का चूर्ण खाके, मूल (मूलापन्न) शाक खाके, पूर्वाषाढा - आमले का चूर्ण खाके, उत्तराषाढा - बिल्वफल खाके, अभिजीत - पुष्प खाके, श्रवण खीर खाके, घनिष्ठा - फल खाके, शतभिषा - तुवेर खाके, पूर्वाप्रीष्ठपदा करेला खाके, उत्तराप्रोष्ठपदा - वराहकंद खाके, रेवती जलचर वनस्पति खाके, अश्विनी वृत्तक वनस्पति चूर्ण खाके और भरणी नक्षत्र में तिलतन्दुक खाकर कार्य को सिद्ध करना । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- १८ [ ७६ ] हे भगवन् ! गति भेद किस प्रकार से है ? गतिभेद (चार) दो प्रकार से है - सूर्यचार और चन्द्रचार | चंद्र चार पंच संवत्सरात्मक युग काल में अभिजीत नक्षत्र ६७ चार से चंद्र का योग करता है, श्रवण नक्षत्र ६७ चार से चन्द्र का योग करता है यावत् उत्तराषाढा भी ६७ चार से चन्द्र के साथ योग करता है । आदित्यचार - भी इसी प्रकार समझना, विशेष यह की उनमें पांच चार ( गतिभेद ) कहना । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- १९ [७७] हे भगवन् ! मास के नाम किस प्रकार है ? एक-एक संवत्सर में बारह मास होते है; उसके लौकिक और लोकोत्तर दो प्रकार के नाम है । लौकिक नाम - श्रावण, भाद्रपद, आसोज, कार्तिक, मृगशिर्ष, पौष, महा, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और अषाढ । लोकोत्तर नाम इस प्रकार है [७८] अभिनन्द, सुप्रतिष्ठ, विजय, प्रीतिवर्द्धन, श्रेयांस, शिव, शिशिर, और हैमवान् तथा [ ७९] वसन्त, कुसुमसंभव, निदाघ और बारहवें वनविरोधि । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत-२० [८०] हे भगवन् ! संवत्सर कितने है ? पांच, नक्षत्रसंवत्सर, युगसंवत्सर, प्रमाणसंवत्सर, लक्षणसंवत्सर, शनैश्वरसंवत्सर । [८१] नक्षत्रसंवत्सर बारह प्रकारक का है - श्रावण, भाद्रपद से लेकर आपाढ तक । वृहस्पति महाग्रह बारह संवत्सर में सर्व नक्षत्र मंडल पूर्ण करता है ।

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