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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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निकली हुई लेश्या से ताडित हुइ लेश्या, इस रत्नप्रभापृथ्वी के समभूतल भूभाग से जितने प्रमाणवाले प्रदेश में सूर्य उर्ध्व व्यवस्थित होता है, इतने प्रमाण से सम मार्ग से एक संख्या प्रमाणवाले छायानुमान से एक पौरुपीछाया को निवर्तित करता है । इसी प्रकार से इसी अभिलापसे ९६ प्रतिपत्तियां समझ लेना ।
भगवन् फिर फरमाते है कि वह सूर्य उनसाठ पौरुषीछाया को उत्पन्न करता है । अर्ध पौरुपीछाया दिवसका कितना भाग व्यतीत होने के बाद उत्पन्न होती है ? दिन का तीसरा भाग व्यतीत होने के वाद उत्पन्न होती है । पुरुष प्रमाणछाया दिन के चतुर्थ भाग व्यतीत होने के बाद उत्पन्न होती है, द्व्यर्द्धपुरुष प्रमाणछाया दिन का पंचमांश भाग व्यतीत होते उत्पन्न होती है इस प्रकार यावत् पच्चीश प्रकार की छाया का वर्णन है । वह इस प्रकार है - खंभछाया, रजुछाया, प्राकारछाया, प्रासादछाया, उद्गमछाया, उच्चत्वछाया, अनुलोमछाया, प्रतिलोमछाया, आरंभिता, उवहिता, समा, प्रतिहता, खीलच्छाया, पक्षच्छाया, पूर्वउदग्रा, पृष्ठउदग्रा, पूर्वकंठभागोपगता, पश्चिमकंठभागोपगता, छायानुवादिनी, कंठानुवादिनी, छाया छायच्छाया, छायाविकंपा, वेहासकडच्छाया और गोलच्छाया । गोलच्छाया के आठ भेद है- गोलच्छाया, अपार्धगोलच्छाया, गोलगोलछाया, अपार्धगोलछाया, गोलावलिछाया, अपार्धगोलावलिछाया, गोलपुंजछाया और अपार्धगोलपुंज छाया ।
प्राभृत - ९ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
प्राभृत- १०
प्राभृत-प्राभूत- १
[४६] योग अर्थात् नक्षत्रो की युति के सम्बन्ध में वस्तु का आवलिकानिपात कैसे होता है ? इस विषय में पांच प्रतिपत्तियां है - एक कहता है-नक्षत्र कृतिका से भरणी तक है । दुसरा कहता है - मघा से अश्लेषा पर्यन्त नक्षत्र है । तीसरा कहता है- धनिष्ठा से श्रवण तक सब नक्षत्र है । चौथा - अश्विनी से रेवती तक नक्षत्र आवलिका है । पांचवाँ - नक्षत्र भरणी से अश्विनी तक है । भगवंत फरमाते है कि यह आवलिका अभिजीत से उत्तराषाढा है ।
प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- २
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[ ४७ ] नक्षत्र का मुहूर्त्त प्रमाण किस तरह है ? भगवंत कहते है कि इन अठ्ठाइस नक्षत्रों में ऐसे भी नक्षत्र है, जो नवमुहूर्त्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताइस सडसठ्ठांश भाग पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योग करते है । फिर पन्द्रह मुहूर्त्त से तीश मुहूर्त से ४५ मुहूर्त से चन्द्रमां से योग करनेवाले विभिन्न नक्षत्र भी है, वह इस प्रकार है - नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताइस सडसठ्ठांश भाग से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाला एक अभिजित नक्षत्र है; पन्द्रह मुहूर्त से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह है- शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा; तीस मुहूर्त से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाले पन्द्रह नक्षत्र है- श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढा ४५ मूहूर्त से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह है