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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि या दिन कभी नहीं होता, वहां रात्रिदिन अवस्थित है ।
भगवंत फरमाते है कि जंबूद्वीप में इशानकोने में सूर्य उदित होता है वहां से अग्निकोने में जाता है, अग्निकोने में उदित होकर नैऋत्य कोने में जाता है, नैऋत्य कोने में उदित होकर वायव्य कोने में जाता है और वायव्य कोने में उदित होकर इशान कोने में जाता है । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है और जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिममें रात्रि होती है । जब दक्षिणार्द्ध में अठ्ठारह मुहर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है और उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहर्त का दिन होता है तब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम में जघन्या बारह मुहर्त की रात्रि होती है । इसी तरह जब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम में उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब मेरुपर्वत के उत्तर-दक्षिण में जघन्या बारह मुहर्त की रात्रि होती है । इसी क्रम से इसी प्रकार आलापकसे समझलेना चाहिए कि जब अठारह मुहूत्तान्तर दिवस होता है तब सातिरेक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है, सत्तरह मुहूर्त का दिवस होता है तब तेरह मुहूर्त की रात्रि होती है...यावत्...जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है।
जब इस जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षाकाल का प्रथम समय होता है तब उत्तरार्द्ध में भी वर्षाकाल का प्रथम समय होता है. जब उत्तरार्द्ध में वर्षाकाल का प्रथम समय होत मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में अनन्तर पुरस्कृतकाल में वर्षाकाल का आरम्भ होता है; जब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में वर्षाकाल का प्रथम समय होता है तब मेरुपर्वत के दक्षिण-उत्तर में अनन्तर पश्चातकृत् काल में वर्षाकाल का प्रथम समय समाप्त होता है । समय के कथनानुसार आवलिका, आनप्राण, स्तोक यावत् ऋतु के दश आलापक समझलेना । वर्षाऋतु के कथनानुसार हेमन्त और ग्रीष्मऋतु का कथन भी समझलेना । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अयन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अयन होता है और उत्तरार्द्ध में प्रथम अयन होता है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में अनन्तर पुरस्कृत् काल में पहला अयन प्राप्त होता है । जब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में प्रथम अयन होता है तब उत्तर-दक्षिण में अनन्तर पश्चात्कृत् कालसमय में प्रथम अयन समाप्त होता है ।
__अयन के कथनानुसार संवत्सर, युग, शतवर्ष यावत् सागरोपम काल में भी समझलेना। जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब उत्तरार्द्ध में भी उत्सर्पिणी होती है, जब उत्तरार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी नहीं होती है क्योंकि-वहां अवस्थित काल होता है । इसी तरह अवसर्पिणी भी जान लेना । लवणसमुद्र - धातकीखण्डद्वीप-कालोदसमुद्र एवं अभ्यन्तर पुष्करवरार्द्धद्वीप इन सबका समस्त कथन जंबूद्वीप के समान ही समझ लेना, विशेष यह कि जंबूद्वीप के स्थान पर स्व-स्व द्वीप समुद्र को कहना ।
(प्राभृत-९) [४४] कितने प्रमाणयुक्त पुरुषछाया से सूर्य परिभ्रमण करता है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियां है । एक मतवादी यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता