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चन्द्रप्रज्ञप्ति-१/६/३२
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तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । यह दुसरे छ मास हुए और ये हुआ दुसरे छ मास का पर्यवसान । यह है आदित्य संवत्सर ।
| प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-७ | [३३] हे भगवन् ! मंडलो की संस्थिति क्या है ? मंडल संस्थिति सम्बन्ध में आठ प्रतिपत्तियां है । कोई एक कहता है कि सर्व मंडल की संस्थिति समचतुरस्र है । कोइ इसे विषम चतुरस्र संस्थानवाली बताते है । कोइ समचतुष्कोण की तो कोइ चौथा उसे विषम चतुष्कोण की कहते है । कोई पांचवा उसे समचक्रवाल बताता है तो कोइ विषमचक्रवाल संस्थित कहते है । सातवां अर्धचक्रवाल संस्थित कहता है तो आठवां मतवादी उसे छत्राकार बताते है । इन सब में जो मंडल की संस्थिति को छत्राकार बताते है वह मेरे मत से तुल्य है । यह कथन पूर्वोक्त नयरूप उपाय से ठीक तरह समझ लेना ।
| प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-८ | [३४] हे भगवन् सर्व मंडलपद कितने बाहल्य से, कितने आयाम विष्कंभ से तथा कितने परिक्षेपसे युक्त है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियां है । पहला परमतवादी कहता है कि सभी मंडल बाहल्य से एक योजन, आयामविष्कम्भ से ११३३ योजन और परिक्षेप से ३३९९ योजन है । दुसरा बताता है कि सर्वमंडल बाहल्य से एक योजन, आयामविष्कम्भ से ११३४ योजन और परिक्षेप से ३४०२ योजन है । तीसरा मतवादी इसका आयामविष्कम्भ ११३५ योजन और परिक्षेप ३४०५ योजन कहता है ।
भगवंत प्ररूपणा करते है कि यह सर्व मंडलपद एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग वाहल्य से अनियत आयामविष्कम्भ और परिक्षेपवाले कहे गए है । क्योंकी-यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । जब ये सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वे सभी मंडलपद एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६४० योजन विष्कम्भ से और ३१५०८९ योजन से किंचित् अधिक परिक्षेपवाले होते है, उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। निष्क्रमण करता हआ सूर्य नए संवत्सर को प्राप्त करके प्रथम अहोरात्र में जब अभ्यन्तर अनन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करता है तब वह मंडलपद के एक योजन के अडचत्तालीश एकसट्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६४५ योजन तथा एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग आयाम विष्कम्भ से और ३१५१०७ योजन से किंचित् हीन परीक्षेपवाला होता है । दिन और रात्रि प्रमाण पूर्ववत् जानना ।
वही सूर्य दुसरे अहोरात्र में तीसरे मंडल में निष्क्रमण करके गति करता है तब एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६५१ योजन एवं एक योजन के नव एकसठ्ठांश भाग आयामविष्कम्भ से तथा ३१५१२५ योजन परिक्षेप से कहे हए है । दिन और रात्रि पूर्ववत् । इस प्रकार से इसी उपाय से निष्क्रमीत सूर्य अनन्तर-अनन्तर मंडल में गति करता है । उस समय पांच योजन और एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग विष्कम्भकी वृद्धि करते करते अट्ठारह-अट्ठारह योजन वृद्धि करते सर्वबाह्य मंडल में पहुंचते है । जव वह