Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 198
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति-१/४/२९ १९७ अन्तर पांच-पांच योजन एवं एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग प्रत्येक मंडल में कम होता रहता है । जब वह दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रविष्ट कर जाते है उस समय दोना के बिच ९९६४० योजन का अन्तर रहेता है और परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । यह हुए दुसरे छह मास और दुसरे छ मास का पर्यवसान । यहीं है आदित्य संवत्सर । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-५ [३०] वहां कितने द्वीप और समुद्र के अन्तर से सूर्य गति करता है ? यह बताईए। इस विषय में पांच प्रतिपत्तियां है । कोइ एक कहता है की सूर्य एक हजार योजन एवं १३३ योजन द्वीप समुद्र को अवगाहन करके सूर्य गति करता है । कोइ फिर ऐसा प्रतिपादन करता है की एकहजार योजन एवं १३४ योजन परिमित द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति करता है । कोई एक बताता है की यह अन्तर एक हजार योजन एवं १३५ योजन का है। चौथा परमतवादी का मत है की अर्धद्वीप समुद्र को अवगाहन करता है । पांचमा कहता है की कोई भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति नहीं करता । इन पांच मतो में जो यह कहता है की ११३३ योजन परिमित द्वीप समुद्रो को व्याप्त करके सूर्य गति करता है, उनके कथन का हेतु यह है की जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब ११३३ योजन अवगाहीत करके गति करने के समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारहमुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है । जब सूर्य सर्वबाह्य मंडल के उपसंक्रमण करके गति करता है, तब लवण समुद्र को ११३३ योजन का अवगाहन करके गति करता है । उस समय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारहमुहूर्त का दिन होता है । इसी प्रकार १३४ एवं १३५ योजन प्रमाण क्षेत्र के विषय में भी समझ लेना । . जो अर्ध द्वीप-समुद्र के अवगाहन करके सूर्य की गति बतलाता है, उनका अभिप्राय यह है की सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके गति करता है तब अर्द्ध जम्बूद्वीप की अवगाहना करके गति करता है, उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी प्रकार सर्वबाह्यमंडल में भी समझना । विशेष यह कि लवणसमुद्र के अर्द्ध भाग को छोड़कर जब सूर्य अवगाहन करता है तब रात्रि दिन की व्यवस्था उसी प्रकार होती है । जिन मतवादी का कथन यह है कि सूर्य कीसी भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके गति नहीं करता उनके मतानुसार तब ही उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त प्रमाण दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । सर्व बाह्यमंडल के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार से समझना, विशेष यह कि लवणसमुद्र को अवगाहीत करके भी सूर्य गति नहीं करता । रात्रिदिन उसी प्रकार होते है । [३१] हे गौतम ! में इस विषय में यह कहता हूं कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वह जंबूद्वीप को १८० योजन से अवगाहीत करता है, उस समय प्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहर्त की रात्रि होती है । इसी तरह सर्वबाह्य मंडल में भी जानना । विशेष यह की लवण समुद्र में १३३ योजन

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