Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 196
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति - १/२/२६ १९५ संस्थिति को प्राप्त करता है । उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । इस तरह पहले छ मास में दक्षिण दिग्भाववर्ती अर्धमंडल संस्थिती होती है । जब दुसरे छ मास का आरंभ होता है तब वहीं सूर्य सर्व बाह्यउत्तरार्ध मंडल के आदि प्रदेश से क्रमशः सर्व बाह्य अनन्तर दुसरे दक्षिणार्द्ध मंडलाभिमुख संक्रमण करके जब वह अहोरात्र समाप्त होता है तब वह दक्षिण अर्द्धमंडल संस्थिति का संक्रमण करके गति करता है। उस समय रात्रि में दो एकसठ्ठांश भाग की हानि और दिन में उतनी ही वृद्धि होती है। इसी क्रम से पूर्वोक्त पद्धति से संक्रमण करता हुआ सूर्य उत्तर की तरफ संक्रमण करते हुए सर्वाभ्यन्तर मंडल में गति करता है तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इस तरह दुसरे छ मास पूर्ण होते है । यहीं आदित्य संवत्सर है और यहीं आदित्य संवत्सर का पर्यवसान है । [२७] हे भगवन् ! उत्तरदिग्वर्ती अर्द्धमंडल संस्थिति कैसी है ? यह बताईए । दक्षिणार्द्धमंडल की संस्थिति के समान ही उत्तरार्द्धमंडल की संस्थिति समझना । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर उत्तर अर्द्धमंडल संस्थिति का संक्रमण करके गति करता है तब उत्कृष्ट अठ्ठारस मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । उत्तरस्थित अभ्यन्तर से दक्षिण की तरफ संक्रमण होता है और दक्षिण से उत्तर की तरफ उपसंक्रमण होता है । इसी तरह इसी उपाय से यावत् सर्वबाह्य दक्षिणार्ध मंडल की संस्थिति प्राप्त करके यावत् दक्षिणदिशा सम्बन्धी सर्वबाह्यमंडल के अनन्तर उत्तरार्धमंडल की संस्थिति को प्राप्त करते है । उत्तर से सर्वबाह्य तीसरी दक्षिणार्धमंडल संस्थिति में गमन करता । इसी तरह यावत् सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करते है तब दुसरे छह मास होते है । ऐसे दुसरे छ मास परिपूर्ण होते है । यहीं आदित्य संवत्सर है और यहीं आदित्य संवत्सर का पर्यवसान है । प्राभृत- १ - प्राभृतप्राभृत- ३ 1 [२८] कौनसा सूर्य, दुसरे सूर्य द्वारा चीर्ण- मुक्त क्षेत्र का प्रतिचरण करता है ? निश्चय से दो सूर्य कहे है - भारतीय सूर्य और ऐवतीय सूर्य । यह दोनो सूर्य त्रीश त्रीश मुहूर्त्त प्रमाण से एक अर्द्धमंडल में संचरण करते है । साठ-साठ मुहूर्तो से एक-एक मंडल में संघात करते है । निष्क्रमण करते हुए ये दोनो सूर्य एक दुसरे से चीर्ण क्षेत्र में संचरण नहीं करते किन्तु प्रवेश करते हुए संचरण करते है । यह जंबूद्वीप नामक द्वीप सर्व द्वीप समुद्र से घीरा हुआ है। उसमें यह भारतीय सूर्य, मध्य जंबूद्वीप के पूर्वपश्चिम दिशा से विस्तारयुक्त और उत्तरदक्षिण दिशा में लम्बी जीवा के १२४ विभाग करके, दक्षिणपूर्व के मंडल के चतुर्थ भाग में ९२ संख्यावाले मंडलो में संचार करते है । उत्तरपश्चिम में मंडल के चतुर्थ भाग में ९१ मंडलो को भारतीय सूर्य चीर्ण करता है । यह भारतीय सूर्य, ऐवतीय सूर्य के मंडलो को मध्य जंबूद्वीप के पूर्वपश्चिम लम्बे क्षेत्र को छेद करके उत्तरपूर्व दिग्भाग के मध्य में चर्तुभाग मंडल के ९२ मंडल को व्याप्त करके उसमें प्रतिचरण करता है । इसी प्रकार दक्षिणपूर्व दिशा में चर्तुभाग में ९१ मंडलो को प्रतिचरित करता । उस समय यह ऐरावतीय सूर्य भारतीय सूर्य से प्रतिचरित दक्षिणपश्चिम मध्य में चतुर्भाग में ९२ मंडलो को प्रतिचरित करता है । और उत्तर पूर्व में ९१

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