Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 194
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति - १/१/१४ १९३ और सर्वबाह्य मंडल से अभ्यन्तर मंडल में गमन करते हुए सूर्य की गति मन्द होती है । सूर्य के १८४ मंडल है । उसके सम्बन्ध में १८४ पुरुष प्रतिपत्ति अर्थात् मतान्तररूप भेद है [१५] पहेले प्राभृतप्राभृत में सूर्योदयकाल में आठ प्रतिपत्तियां कही है । दुसरे प्राभृतप्राभृत में भेदघात सम्बन्धी दो और तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्त्तगति सम्वन्धी चार प्रतिपत्तियां है । [१६-१९] दसवें प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रो की आवलिका, दुसरे में मुहूर्ताग्र, तीसरे में पूर्व पश्चिमादि विभाग, चौथे में योग, पांचवे में कुल, छठ्ठे में पूर्णमासी, सातवें में सन्निपात और आठवे में संस्थिति, नवमें प्राभृत- प्राभृत में ताराओ का परिमाण, दसवे में नक्षत्र नेता, ग्यारहवे में चन्द्रमार्ग, बारहवे में अधिपति देवता और तेरहवे में मुहूर्त, चौदहवे में दिन और रात्रि, पन्दरहवे में तिथियां, सोलहवे में नक्षत्रो के गोत्र, सत्तरहवे में नक्षत्र का भोजन, अट्ठारहवे में सूर्य की चार- गति, उन्नीसवे में मास और बीसवे में संवत्सर, एकवीस में प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रद्वार तथा बाईसवे में नक्षत्रविचय इस तरह दसवें प्राभृत में बाईस अधिकार है । • [२०] उस काल उस समय में मिथिला नामक नगरी थी। ऋद्धि सम्पन्न और समृद्ध ऐसे प्रमुदितजन वहां रहते थे । यावत् वह प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थी । उस मिथिला नगरी के ईशानकोण में माणिभद्र नामक एक चैत्य था । वहां जितशत्रु राजा एवं धारिणी राणी थी । उस काल और उस समय में भगवान महावीर वहां पधारे । पर्षदा नीकली । धर्मोपदेश हुआ यावत् राजा जिस दिशासे आया उसी दिशामें वापिस लौटा | [२१] उस काल जिनका गौतम गोत्र था, वे उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति थे, सात हाथ उंचे और समचतुरस्र संस्थानवाले थे यावत् उसने कहा । प्राभृत- १ - प्राभृतप्राभृत- १ [२२] आपके अभिप्राय से मुहूर्त की क्षय वृद्धि कैसे होती है ? यह ८१९ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त का २७/६७ भाग से होती है । [२३] जिस समय में सूर्य सर्वाभ्यन्तर मुहूर्त से निकलकर प्रतिदिन एक मंडलाचार से यावत् सर्वबाह्य मंडल में तथा सर्वबाह्य मंडल से अपसरण करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करता है, यह समय कितने रात्रि-दिन का कहा है ? यह ३६६ रात्रिदिन का है । [२४] पूर्वोक्त कालमान में सूर्य कितने मंडलो में गति करता है ? वह १८४ मंडलो गत करता है । १८२ मंडलो में दो बार गमन करता है । सर्व अभ्यन्तर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में प्रविष्ट होता हुआ सूर्य सर्व अभ्यन्तर तथा सर्व बाह्य मंडल में दो बार गमन करता है । [२५] सूर्य के उक्त गमनागमन के दौरान एक संवत्सर में अट्ठारह मुहूर्त प्रमाणवाला एक दिन और अठ्ठारहमुहूर्त्त प्रमाण की एक रात्रि होती है । तथा बारह मुहूर्त का एक दिन और बारह मुहूर्त्तवाली एक रात्रि होती है । पहले छ मास में अठ्ठारमुहूर्त की एक रात्रि और बारहमुहूर्त का एक दिन होता है । तथा दुसरे छ मास में अट्ठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की एक रात्रि होती है । लेकिन पहले या दुसरे छ मास में पन्द्रह मुहूर्त्त का दिवस या 8 13

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