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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदसणस्स
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| १७ | चन्द्र-प्रज्ञप्ति
उपांगसूत्र-६-हिन्दी अनुवाद
अरिहंतो को नमस्कार हो । यह चन्द्रप्रज्ञप्ति नामक उपांगसूत्र वर्तमान में जिस प्रकार से प्राप्त होता है, उसमें और सूर्य प्राप्ति उपांग सूत्र में कोइ भिन्नता दृष्टिगोचर नहीं होती है। दोनो उपांग में बीसबीस प्राभृत ही है । केवल चंद्रप्रज्ञप्ति में आरंभिक गाथाए अतिरिक्त है, विशेष कोइ भेद नहीं है ।
( प्राभृत-१ [१] नवनलिन-कुवलय-विकसित शतपत्रकमल जैसे जिसके दो नेत्र है, मनोहर गति से युक्त ऐसे गजेन्द्र समान गतिवाले ऐसे वीर भगवंत ! आप जय को प्राप्त करे ।
[२] असुर-सुर-गरुड-भुजग आदि देवो से वन्दित, क्लेश रहित ऐसे अरिहंत-सिद्धआचार्य-उपाध्याय और सर्व साधु को नमस्कार करके
[३] स्फुट, गंभीर, प्रकटार्थ, पूर्वरूप श्रुत के सारभूत, सूक्ष्मबुद्धि आचार्यो के द्वारा उपदिष्ट ज्योतिष्-गणराज प्रज्ञप्ति को मैं कहुंगा ।।
[४] इन्द्रभूति गौतम मन-वचन-काया से वन्दन करके श्रेष्ठ जिनवर ऐसे श्री वर्द्धमान स्वामी को जोइसगणराज प्रज्ञप्ति के विषय में पूछते है
[५-९] सूर्य एक वर्षमें कितने मण्डलों में जाता है ? कैसी तिर्यग् गति करता है ? कितने क्षेत्र को प्रकाशीत करते है ? प्रकाश की मर्यादा क्या है ? संस्थिति कैसी है ? उसकी लेश्या कहां प्रतिहत होती है ? प्रकाश संस्थिति किस तरह होती है ? वरण कौन करता है ? उदयावस्था कैसे होती है ? पौरुपीछाया का प्रमाण क्या है ? योग किसको कहते है ? संवत्सर कितने है ? उसका काल क्या है ? चन्द्रमा की वृद्धि कैसे होती है ? उसका प्रकाश कब बढता है ? शीघ्रगतिवाले कौन है ? प्रकाश का लक्षण क्या है ? च्यवन और उपपात कथन, उच्चत्व, सूर्य की संख्या और अनुभाव यह बीस प्राभृत है ।
[१०-११] मुहूर्तों की वृद्धि-हानि, अर्द्धमंडल संस्थिति, अन्य व्याप्त क्षेत्र में संचरण और संचरण का अन्तर प्रमाण-अवगाहन और गति कैसी है ? मंडलो का संस्थान और उसका विष्कम्भ कैसा है ? यह आठ प्राभृतप्राभृत पहले प्राभृत में है ।।
[१२-१३] प्रथम प्राभृत में ये उनतीस परमतरुप प्रतिपत्तियां है । जैसे की - चौथे प्राभृतप्राभृत में छह, पांचवे में पांच, छठे में सात, सातवे में आठ और आठवें में तीन प्रतिपत्तियां है । दुसरे प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में उदयकाल और अस्तकाल आश्रित घातरुप अर्थात् परमत की दो प्रतिपत्तियां है । तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्तगति सम्बन्धी चार प्रति-पत्तियां है ।
[१४] सर्वाभ्यन्तर मंडल से बहार गमन करते हुए सूर्य की गति शीघ्रतर होती है ।