Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 195
________________ १९४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद रात्रि नहीं होती इसका क्या हेतु है ? वह मुझे बताईए । यह जंबूद्वीप नामक द्वीप है । सर्व द्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करके गति करता है, तब परमप्रकर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट सर्वाधिक अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब वहीं सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से नीकलकर नयें सूर्यसंवत्सर को आरंभ करके पहले अहोरात्र में सर्वाभ्यन्तर मंडल के अनन्तर मंडल में संक्रमण करके गति करता है तब अठारहमुहूर्त के दिन में दो एक सट्ठांश भाग न्यून होते है और बारहमुहूर्त की रात्रि में दो एकसठ्ठांश भाग की वृद्धि होती है । इसी तरह और एक मंडल में संक्रमण करता है तब चार एकसठ्ठांश मुहूर्त का दिन घटता है और रात्रि बढती है । इसी तरह एक-एक मंडल में आगे-आगे सूर्य का संक्रमण होता है और अट्ठारसमुहूर्त के दिन में दो एकसठ्ठांश दो एकसठ्ठांश मुहूर्त की हानी होती है और उतनी ही रात्रि में वृद्धि होती है । इसी तरह सर्वाभ्यन्तर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में जब सूर्य संक्रमण करता है तब १८३ रात्रिदिन पूर्ण होते है और तीनसो छासठ मुहूर्त के एकसठ्ठ भाग मुहूर्त प्रमाण दिन की हानि और रात्रि की वृद्धि होती है, उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहर्त का दिन होता है । इस तरह यह पहले छ मास पूर्ण होते है । पहले छ मास पूर्ण होते ही सूर्य सर्व बाह्यमंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल की ओर गमन करता है । जब वह अनन्तर पहले अभ्यन्तर मंडल में संक्रमण करता है, तब दो एकसठ्ठांश मुहूर्त रात्रि की हानि होती है और दिन में वृद्धि होती है । इसी तरह इसी अनुक्रम से दो एकसठ्ठांस मुहूर्त रात्रि की हानि और दिन की वृद्धि होते होते जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रविष्ट करके संक्रमण करता है, तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । यह सूर्य पूर्वोक्त रीतिसे १८३ दिन तक अभ्यन्तरमंडल की तरफ गमन करता है, इस तरह दुसरे छ मास पूर्ण होते है । इसी तरह दो छ मास का एक आदित्य संवत्सर होता है । उसमें एक ही बार अठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की रात्रि होती है तथा एक ही बार अट्ठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहूर्त का दिन होता है । पन्द्रह मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती । अनुपात गति से यह हो शकता है । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-२ | [२६] अर्द्धमंडल संस्थिति-व्यवस्था कैसे होती है ? दो प्रकार से अर्द्ध मंडल संस्थिति मैने कही है - दक्षिण दिग्भावि और उत्तरदिग्भावि । हे भगवन् ! यह दक्षिण दिग्भावि अर्धमंडल संस्थिति क्या है ? जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से संक्रमण करके दक्षिण अर्द्धमंडल संस्थिति में गति करता है, तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । निष्क्रमण करता हुआ वह सूर्य, नए संवत्सर को प्राप्त करके प्रथम अहोरात्र में दक्षिण के अनन्तर पश्चात् भाग से उसके आदि प्रदेश में अर्द्धमंडल संस्थिति प्राप्त करके गति करता है। तब दो एकसठ्ठांश मुहूर्त प्रमाण दिन की हानि और रात्रि की वृद्धि होती है । जब वह दुसरे मंडल से निकलकर दक्षिण दिशा के तीसरे मंडल में गति करता है तब चार एकसठ्ठांश मुहूर्त की दिन में हानी और रात्रि में वृद्धि होती है । निश्चय से इस अनुक्रम से इसी तरह दक्षिण की तरफ एक एक अनन्तर अभ्यन्तर मंडल में संक्रमण करता हुआ सूर्य सर्व बाह्यमंडल

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