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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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मास में चंद्र को और अडतालीश मास में सूर्य को ग्रसित करता है ।
[१९६] हे भगवन् ! चंद्र को शशी क्युं कहते है ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्तदेव, कान्तदेवीयां, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते है, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है इसलिए 'चंद्र- शशी' चंद्र-शशी ऐसा कहा जाता है ।
हे भगवन् ! सूर्य को आदित्य क्युं कहा जाता है ? सूर्य की आदि के काल से समय, आवलिका, आनाप्राण, स्तोक यावत् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी की गणना होती है इसलिए सूर्यआदित्य कहलाता है ।
[१९७] ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष राज चंद्र की कितनी अग्रमहिषियां है ? चार - चंद्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा इत्यादि कथन पूर्ववत् जान लेना । सूर्य का कथन भी पूर्ववत् । वह चंद्र-सूर्य कैसे कामभोग को अनुभवते हुए विचरण करते है ? कोई पुरुष यौवन के आरम्भकालवाले बल से युक्त, सदृश पत्नी के साथ तुर्त में विवाहीत हुआ हो, धन का अर्थी वह पुरुष सोलह साल परदेश गमन करके धन प्राप्त करके अपने घर में लौटा हो, उसके बाद बलिकर्म-कौतुक -मंगल-प्रायश्चित आदि करके शुद्ध वस्त्र, अल्प लेकिन मूल्यवान् आभरण हुए, अट्ठारह प्रकार के व्यंजन से युक्त, स्थालीपाक शुद्ध भोजन करके, उत्तम ऐसे मूल्यवान् वासगृह में प्रवेश करता है;
वहां उत्तमोत्तम धूप-सुगंध मघमघायमान हो, शय्या भी कोमल और दोनो तरफ से उन्नत हो इत्यादि, अपनी सुन्दर पत्नी के साथ श्रृंगार आदि से युक्त होकर हास्य-विलास - चेष्टाआलाप-संलाप - विलास इत्यादि सहित अनुरक्त होकर, अविरत मनोनुकूल होकर, अन्यत्र कहीं पर मन न लगाते हुए, केवल इष्ट शब्दादि पंचविध ऐसे मनुष्य सम्बन्धी कामभोगो का अनुभव करता हुआ विचरता है, उस समय जो सुखशाता का अनुभव करता है, उनसे अनंतगुण विशिष्टतर व्यंतर देवो के कामभोग होते है ।
व्यंतर देवो के कामभोग से अनंतगुण विशिष्टतर असुरेन्द्र को छोड़कर शेष भवनपति देवो के कामभोग होते है, भवनवासी देवो से अनंतगुण विशिष्टतर असुरकुमार इन्द्ररूप देवी के कामभोग होते है, उनसे अनंतगुण विशिष्टतर ग्रहगण-नक्षत्र और तारारूप देवो के कामभोग होते है, उनसे विशिष्टतर चंद्र-सूर्य देवो के कामभोग होते है । इस प्रकार के कामभोगो का चंद्र-सूर्य ज्योतिषेन्द्र अनुभव करके विचरण करते है ।
[१९८] निश्चय से यह अठ्ठासी महाग्रह कहे है- अंगारक, विकालक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, आधुनिक, प्राधूणिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसंताणक, सोम, सहित, आश्वासन, कायोपग, कर्बटक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ, कंस, कंसनाभ, कंसवर्णाभ, नील, नीलावभास, रूप्य, रूप्यभास, भस्म, भस्मराशी, तिल, तिलपुष्पवर्ण, दक, दकवर्ण, काक, काकन्ध, इन्द्राग्नि, धुमकेतु, हरि, पिंगलक, बुध, शुक्र, बृहस्पति, राहु, अगस्ती, माणवक, काश, स्पर्श, धूर, प्रमुख, विकट, विसन्धिकल्प, निजल्ल, प्रजल्ल, जटितायल, अरुण, अग्निल, काल, महाकाल, स्वस्तिक, सौवस्तिक, वर्धमानक, प्रलम्ब, नित्यालोक, नित्युद्योत, स्वयंप्रभ, अवभास, श्रेयस्कर, क्षेमंकर, आभंकर, प्रभंकर, अरज, विरज, अशोक, वितशोक, विमल, वितप्त, विवस्त्र, विशाल, शाल, सुव्रत, अनिवर्त्ति, एकजटी, दुजटी, करकरिक, राजर्गल,