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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कहना । (बहुत-से) एकेन्द्रिय) जीव सात के और आठ के बन्धक होते हैं । मनुष्यों ? गौतम ! (१) सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, (२) बहुत-से सात और एक आठ कर्मप्रकृति बांधता है, (३) बहुत-से मनुष्य सात के और एक छह का बन्धक है, इसी प्रकार छह के बन्धक के साथ भी दो भंग, (६-७) एक के बन्धक के साथ भी दो भंग, (८-११) बहुत-से सात के बन्धक, एक आठ का और एक छह का बन्धक, यों चार भंग, (१२-१५) बहुत-से सात के बन्धक, एक आठ का और एक मनुष्य एक प्रकृति का बन्धक, यों चार भंग, (१६-१९) बहुत-से सात के बन्धक तथा एक छह का और एक, एक का बन्धक, इसके भी चार भंग, (२०-२७) बहुत-से सात के बंधक, एक आठ का, एक छह का और एक, एक का बन्धक होता है, यों इसके आठ भंग हैं । कुल मिलाकर ये सत्ताईस भंग हैं। ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीय एवं अन्तराय का कथन भी करना ।
भगवन् ! (एक) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! वह सात, आठ, छह या एक का बन्धक होता है, अथवा अबंधक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी समझना । शेष नारक आदि वैमानिक पर्यन्त सात या
आठ के बन्धक हैं । (बहुत) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! १. सभी जीव सात के, आठ के और एक के बन्धक होते हैं, २. बहुत जीव सात, आठ या एक के बन्धक होते हैं और एक छह का बन्धक होता है | ३. बहुत जीव सात, आठ, एक तथा छह के बन्धक होते हैं, ४-५. अबन्धक के साथ भी दो भंग, ६-९. बहुत जीव सात के, आठ के, एक के बंधक होते हैं तथा कोई एक छह का तथा कोई एक अबन्धक भी होता है, यों चार भंग होते हैं । कुल नौ भंग हुए । एकेन्द्रिय जीवों को अभंगक जानना । नारक आदि वैमानिकों तक के तीन-तीन भंग कहना । मनुष्यों के विषय में वेदनीयकर्म के वेदन के साथ, गौतम ! १-बहुत-से सात के अथवा एक के बन्धक होते है। २-बहुत-से मनुष्य सात के और एक के बन्धक तथा कोई एक छह का, एक आठ का बन्धक है या फिर अबन्धक होता है । इस प्रकार ये कुल मिलाकर सत्ताईस भंग-प्राणातिपातविरत की क्रियाओं के समान कहना | वेदनीयकर्म के वेदन के समान आयुष्य, नाम और गोत्र कर्म में भी कहना । ज्ञानावरणीय समान मोहनीयकर्म के वेदन के साथ बन्ध को कहना ।
पद-२६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-२७-“कर्मवेदवेदकपद") [५४९] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों तक हैं | भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! सात या आठ का । इसी प्रकार मनुष्य में भी जानना । शेष सभी जीव वैमानिक पर्यन्त एकत्व और बहुत्व से नियमतः आठ कर्मप्रकृतियां वेदते है । (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए, गौतम ! १. सभी जीव आठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, २. कई जीव आठ कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, ३. कई जीव आठ और कई सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यपद में भी ये तीन भंग