Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ १४४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अन्तर्मुहूर्त का है। [६१९] भगवन् ! केवलिसमुद्घात कितने समय का है ? गौतम ! आठ समय का, -प्रथम समय में दण्ड करता है, द्वितीय समय में कपाट, तृतीय समय में मन्थान, चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, पंचम समय में लोक-पूरण को सिकोड़ता है, छठे समय में मन्थान को, सातवें समय में कपाट को और आठवें समय में दणअड को सिकोड़ता है और दण्ड का संकोच करते ही शरीरस्थ हो जाता है । भगवन् ! तथारूप से समुद्धात प्राप्त केवली क्या मनोयोग का, वचनयोग का अथवा काययोग का प्रयोग करता है ? गौतम ! वह केवल काययोग का प्रयोग करता है । भगवन् ! काययोग का प्रयोग करता हुआ केवली क्या औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, औदारिकमिश्र०, वैक्रिय०, वैक्रियमिश्र०, आहाराकशरीर०, आहारकमिश्र० अथवा कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है ? गौतम ! वह औदारिकशरीरकाययोग का, औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का और कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है । प्रथम और अष्टम समय में औदारिकशरीरकाययोग का, दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का तथा तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है । [६२०] भगवन् ! तथारूप समुद्धात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं, क्या वह सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । पहले वे उससे प्रतिनिवृत्त होते हैं । तत्पश्चात् वे मनोयोग, वचनयोग और काययोग का भी उपयोग करते हैं । भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करता हुआ केवलिसमुद्घात करनेवाला केवली क्या सत्यमनोयोग का, मृषामनोयोग का, सत्यामृषामनोयोग अथवा असत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है ? गौतम ! वह सत्यमनोयोग और असत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है, मृषामनोयोग और सत्यामृषामनोयोग का नहीं । वचनयोग का उपयोग करता हुआ केवली० ? गौतम ! वह सत्यवचनयोग और असत्यामृषावचनयोग का उपयोग करता है, मृषावचनयोग और सत्यमृषावचनयोग का नहीं । काययोग का उपयोग करता हुआ आता है, जाता है, ठहरता है, बैठता है, करवट बदलता है, लांघता है, या वापस लौटाये जाने वाले पीठ, पट्टा, शय्या आदि वापस लौटाता है । [६२१] भगवन् ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते । वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन वचनयोग का निरोध करते हैं। तत्पश्चात् अपर्याप्तक सूक्ष्मपनकजीव, जो जघन्ययोग वाला हो, उस से असंख्यातगुणहीन काययोग का निरोध करते हैं । काययोगनिरोध करके वे योगनिरोध करते हैं । अयोगत्व प्राप्त करते हैं । धीरे-से पांच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण जितने काल में असंख्यातसामयिक अन्तर्मुहर्त तक होने वाले शैलेशीकरण को अंगीकार करते हैं । असंख्यात कर्मस्कन्धों का क्षय कर डालते हैं । वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र कर्मों का एक साथ क्षय करते हैं । औदारिक, तैजस और काण शरीर का पूर्णतया सदा के लिए त्याग करते हैं । ऋजुश्रेणी को प्राप्त होकर अस्पृशत् गति से एक समय में अविग्रह से ऊर्ध्वगमन कर साकारोपयोग से उपयुक्त होकर वे

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242