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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
_ नमो नमो निम्मलदसणस्स १६ | सूर्यप्रज्ञप्ति
उपाङ्गसूत्र-५-हिन्दीअनुवाद
(प्राभृत-१) [१] अरिहंतो को नमस्कार हो । उस काल उस समय में मिथिला नामक नगरी थी। ऋद्धि सम्पन्न और समृद्ध ऐसे प्रमुदितजन वहां रहते थे । यावत् वह प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थी । उस मिथिला नगरी के ईशानकोण में माणिभद्र नामक एक चैत्य था । वहां जितशत्रु राजा एवं धारिणी राणी थी । उस काल और उस समय में भगवान महावीर वहां पधारे । पर्षदा नीकली । धर्मोपदेश हुआ यावत् राजा जिस दिशासे आया उसी दिशामें वापिस लौटा ।
[२] उस काल - उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति थे, जिनका गौतम गोत्र था, वे सात हाथ उंचे और समचतुरस्र संस्थानवाले थे यावत् उसने कहा।
[३-७] सूर्य एक वर्षमें कितने मण्डलों में जाता है ? कैसी तिर्यग् गति करता है ? कितने क्षेत्र को प्रकाशीत करते है ? प्रकाश की मर्यादा क्या है ? संस्थिति कैसी है ? उसकी लेश्या कहां प्रतिहत होती है ? प्रकाश संस्थिति किस तरह होती है ? वरण कौन करता है ? उदयावस्था कैसे होती है ? पौरुषीछाया का प्रमाण क्या है ? योग किसको कहते है ? संवत्सर कितने है ? उसका काल क्या है ? चन्द्रमा की वृद्धि कैसे होती है ? उसका प्रकाश कब बढता है ? शीघ्रगतिवाले कौन है ? प्रकाश का लक्षण क्या है ? च्यवन और उपपात कथन, उच्चत्व, सूर्य की संख्या और अनुभाव यह बीस प्राभृत है ।
[८-९] मुहूर्तो की वृद्धि-हानि, अर्द्धमंडल संस्थिति, अन्य व्याप्त क्षेत्र में संचरण और संचरण का अन्तर प्रमाण-अवगाहन और गति कैसी है ? मंडलो का संस्थान और उसका विष्कम्भ कैसा है ? यह आठ प्राभृतप्राभृत पहले प्राभृत में है ।
[१०-११] प्रथम प्राभृत में ये उनतीस परमतरुप प्रतिपत्तियां है । जैसे की - चौथे प्राभृतप्राभृत में छह, पांचवे में पांच, छठे में सात, सातवे में आठ और आठवें में तीन प्रतिपत्तियां है । दुसरे प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में उदयकाल और अस्तकाल आश्रित घातरुप अर्थात् परमत की दो प्रतिपत्तियां है । तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहर्तगति सम्बन्धी चार प्रति-पत्तियां है ।
[१२] सर्वाभ्यन्तर मंडल से बहार गमन करते हुए सूर्य की गति शीघ्रतर होती है । और सर्वबाह्य मंडल से अभ्यन्तर मंडल में गमन करते हुए सूर्य की गति मन्द होती है । सूर्य के १८४ मंडल है । उसके सम्बन्ध में १८४ पुरुष प्रतिपत्ति अर्थात् मतान्तररूप भेद है ।
[१३] पहेले प्राभृतप्राभृत में सूर्योदयकाल में आठ प्रतिपत्तियां कही है । दुसरे प्राभृतप्राभृत में भेदघात सम्बन्धी दो और तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्तगति सम्बन्धी चार प्रतिपत्तियां है ।