Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 151
________________ १५० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नहीं है, वे जब सर्वाभ्यन्तर मंडल से निष्क्रमण करता है तब पांच-पांच योजन और एक योजन के पैंतीस एकसठ्ठांश भाग के अन्तर से प्रत्येक मंडल में अभिवृद्धि करते हुए और बाह्य मंडल से अभ्यन्तर मंडल की तरफ प्रवेश करते हुए कम करते-करते गति करते है ।। यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से परिक्षेप से घीरा हुआ है । जब ये दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल का संक्रमण करके गति करते है तब एक प्रकार से ९९००० योजन का और दुसरा ६४० योजन का परस्पर अन्तर होता है । उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारस मुहूर्त का दिन और जघन्य बारहमुहूर्त की रात्रि होती है । निष्क्रम्यमान वे सूर्यो नूतन संवत्सर के पहले अहोरात्र में अभ्यन्तर मंडल के प्रथम मंडल का उपसंक्रमण करके जब दुसरे मंडल में गति करता है, तब ९९६४५ योजन एवं एक योजन के पैतीस एकसठ्ठांश भाग जितना परस्पर अन्तर रखके यह दोनो सूर्य गति करते है । उस समय दो एकसठ्ठांश मुहूर्त दिन की हानि और रात्रि की वृद्धि होती है । जब यह दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर निष्क्रमण करके दुसरे मंडल से तीसरे मंडल में गति करते है, तब ९९६५१ योजन एवं एक योजन के नव एकसट्ठांश भाग का परस्पर अन्तर होता है। उस समय चार एकसठ्ठांश मुहूर्त की दिन में हानि और रात्रि में वृद्धि होती है । इसी अनुक्रम से निष्क्रम्यमाण दोनो सूर्य अनन्तर-अनन्तर मंडल में गति करते है तब पांच-पांच योजन और एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग परस्पर अन्तर में वृद्धि होती है और १००६६० योजन का परस्पर अन्तर हो जाता है, तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । यहां छ मास पूर्ण होते है । दुसरे छ मास का आरंभ होता है तब दोनो सूर्य सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल की तरफ संक्रमण करते हुए गति करते है । उस समय दोनो सूर्य का परस्पर अन्तर १००६५४ योजन एवं एक योजन के छब्बीश एकसठ्ठांश भाग का होता है और अठारस मुहूर्त की रात्रि के दो एकसठ्ठांश मुहर्त की हानि तथा बारह मुहूर्त के दिन में दो एकसठ्ठांश मुहूर्त की वृद्धि होती है । इसी अनुक्रम से संक्रमण करते हुए दोनो सूर्य अभ्यन्तर मंडल की तरफ प्रविष्ट होते है तब दोनो सूर्यो का परस्पर अन्तर पांच-पांच योजन एवं एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग प्रत्येक मंडल में कम होता रहता है । जब वह दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रविष्ट कर जाते है उस समय दोना के बिच ९९६४० योजन का अन्तर रहेता है और परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । यह हुए दुसरे छह मास और दुसरे छ मास का पर्यवसान । यहीं है आदित्य संवत्सर । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-५ | [२६] वहां कितने द्वीप और समुद्र के अन्तर से सूर्य गति करता है ? यह बताईए। इस विषय में पांच प्रतिपत्तियां है । कोइ एक कहता है की सूर्य एक हजार योजन एवं १३३ योजन द्वीप समुद्र को अवगाहन करके सूर्य गति करता है । कोइ फिर ऐसा प्रतिपादन करता है की एकहजार योजन एवं १३४ योजन परिमित द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति करता है । कोई एक बताता है की यह अन्तर एक हजार योजन एवं १३५ योजन का है। चौथा परमतवादी का मत है की अर्धद्वीप समुद्र को अवगाहन करता है । पांचमा कहता है

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