Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 155
________________ १५४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सभी मंडल के अन्तर दो योजन विष्कम्भवाले है । यह पुरा मार्ग १८३ से गुणित करने से ५१० योजन का होता है । यह अभ्यन्तर मंडलवृत्त से बाह्यमंडलवृत्त और बाह्य से अभ्यन्तर मंडलवृत्त मार्ग कितना है ? यह मार्ग ११५ योजन और एक योजन का अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग जितना है । प्राभृत-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण । (प्राभृत-२) प्राभूत-प्राभृत-१ [३१] हे भगवन् ! सूर्य की तिर्थी गति कैसी है ? इस विषय में आठ प्रतिपत्तियां है । (१) पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रभातकाल का सूर्य आकाश में उदित होता है वह इस समग्र जगत् को तिर्छा करता है और पश्चिम लोकान्त में सन्ध्या समय में आकाश में अस्त होता है । (२) पूर्वदिशा के लोकान्त से पातः काल में सूर्य आकाश में उदित होता है, तिर्यक्लोक को तिर्छा या प्रकाशीत करके पश्चिमलोकान्त में शाम को अस्त हो जाता है । (३) पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रभात समये आकाश में जाकर तिर्यकलोक को तिर्यक् करता है फिर पश्चिम लोकान्त में शामको नीचे की ओर परावर्तीत करता है, नीचे आकर पृथ्वी के दुसरे भाग में पूर्व दिशाके लोकान्त से प्रातःकाल में फिर उदित होता है । (४) पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रातःकाल में सूर्य पृथ्वीकाय में उदित होता है, इस तिर्यक्लोक को तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्त में शामको पृथ्वीकाय में अस्त होता है । (५) पूर्व भाग के लोकान्त से प्रातःकाल में सूर्य पृथ्वीकाय में उदित होता है, वह सूर्य इस मनुष्यलोक को तिर्यक् करके पश्चिम दिशा के लोकान्त में शामको अस्ताचल में प्रवेश करके अधोलोक में जाता है, फिर वहां से आकर पूर्वलोकान्त में प्रातःकाल में सूर्य पृथ्वीकाय में उदित होता है । (६) पूर्व दिशावर्ती लोकान्त से सूर्य अप्काय में उदित होता है, वह सूर्य इस मनुष्यलोक को तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्त में अप्काय में अदृश्य हो जाता है । (७) पूर्वदिग् लोकान्त से सूर्य प्रातःकाल में समुद्र में उदित होता है, वह सूर्य इस तिर्यक्लोक को तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्त में शामको अपकाय में प्रवेश करता है, वहां से अधोलोक में जाकर पृथ्वी के दुसरे भाग में पूर्वदिग् लोकान्त में प्रभातकाल में अप्काय में उदित होता है । (८) पूर्वदिशा के लोकान्त से बहुत योजन-सेंकडो-हजारो योजन अत्यन्त दूर तक उंचे जाकर प्रभात का सूर्य आकाश में उदित होता है, वह सूर्य इस दक्षिणार्द्ध को प्रकाशित करता है, फिर दक्षिणार्ध में रात्रि होती है, पूर्वदिग् लोकान्त से बहुत योजन-सेंकडो-हजारो योजन उंचे जाकर प्रातःकाल में आकाश में उदित होता है। भगवंत कहते है कि इस जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम और उत्तरदक्षिण लम्बी जीवा से १२४ मंडल के विभाग करके दक्षिणपूर्व तथा उत्तरपश्चिम दिशा में मंडल के चतुर्थ भाग में रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भू भाग से ८०० योजन उपर जाकर इस अवकाश प्रदेश में दो सूर्य उदित होते है । तब दक्षिणोत्तर में जम्बूद्वीप के भाग को तिर्यक्-प्रकाशीत करके पूर्वपश्चिम जंबूद्वीप के दो भागो में रात्रि करता है, और जब पूर्वपश्चिम के भागो को तिर्यक करते है तब दक्षिण-उत्तर में रात्रि होती है । इस तरह इस जम्बूद्वीप के दक्षिण-उत्तर एवं पूर्व

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