Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 167
________________ १६६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद आर्द्रा, पुनर्वसू और पुष्य से, माघीपूर्णिमा - अश्लेषा और मघा से, फाल्गुनी पूर्णिमा - पूर्वा और उत्तराफाल्गुनी से चैत्री पूर्णिमा - हस्त और चित्रा से, वैशाखीपूर्णिमा - स्वाति और विशाखा से, ज्येष्ठामूली पूर्णिमा - अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल से और अषाढी पूर्णिमा - पूर्वा तथा उत्तराषाढा नक्षत्र से योग करती है । [४९] श्राविष्ठा पूर्णिमा क्या कुल-उपकुल या कुलोपकुल नक्षत्र से योग करती है ? वह तीनो का योग करती है - कुल का योग करते हुए वह घनिष्ठा नक्षत्र का योग करती है, उपकुल से श्रवणनक्षत्र का और कुलोपकुल से अभिजित नक्षत्र का योग करती है । इसी तरह से आगे-आगे की पूर्णिमा के सम्बन्ध में समझना चाहिए- जैसे कि प्रौष्ठपदी पूर्णिमा योग करते हुए कुल से उत्तराप्रौष्ठपदा से, उपकुल से पूर्वा प्रौष्ठपदा से और कुलोपकुल से शतभिषा नक्षत्र योग करती है । आसोयुजी पूर्णिमा योग करते हुए कुल से अश्विनी नक्षत्र से और उपकुल से रेवती नक्षत्र से योग करती है, लेकिन उनको कुलोपकुल का योग नहीं होता । पौषी और ज्येष्ठामूली पूर्णिमा में कुलोपकुल योग होता है, शेष सभी पूर्णिमाओ में कुलोपकुल नक्षत्र का योग नहीं बनता । श्राविष्ठी अमावास्या कितने नक्षत्र से योग करती है ? वह अश्लेषा और मघा दो नक्षत्रो से योग करती है । इसी तरह प्रौष्टपदी - पूर्वा तथा उत्तरा फाल्गुनी से, आसोयुजी - हस्त तथा चित्रा से, कार्तिकी - स्वाति तथा विशाखा से, मृगशिरा-अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल से, पौषी - पूर्वा और उत्तराषाढा से, माघी- अभिजीत्, श्रवण और घनिष्ठा से, फाल्गुनी - शतभिषा और पूर्वप्रोष्ठपदा से, चैत्री उत्तराप्रोष्ठपदा, रेवती और अश्विनी से, वैशाखी - भरणी और कृतिका से, ज्येष्ठामूली - मृगशिर और रोहिणी से, आषाढा अमावास्या आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य से योग करती है । श्राविष्ठी अमावास्या कुल एवं उपकुल नक्षत्रो से योग करती है, कुलोपकुल से नहीं, कुल में मघा नक्षत्र से और उपकुल में अश्लेषा नक्षत्र से योग करती है । मृगशिरी, माघी, फाल्गुनी और आषाढी अमावास्या को कुलादि तीनो नक्षत्रो का योग होता है, शेष अमावास्या को कुलोपकुल नक्षत्रो का योग नहीं होता । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत-७ [५० ] हे भगवंत् ! पूर्णिमा अमावास्या का सन्निपात किस प्रकार कहा है ? जब श्राविष्ठापूर्णिमा होती है तब अमावास्या मघानक्षत्र युक्त होती है, जब मघायुक्त पूर्णिमा होती है तब अमावास्या घनिष्ठायुक्त होती है इसी तरह प्रोष्ठपदायुक्त पूर्णिमा के बाद अमावास्या फाल्गुनी, फाल्गुनयुक्त पूर्णिमा के बाद प्रौष्ठपदा अमावास्या; अश्विनीयुक्त पूनम के बाद चित्रायुक्त अमावास्या; कृतिकायुक्त पूर्णिमा के वाद विशाखायुक्त अमावास्या; मृगशिर्षयुक्त पूनम के बाद ज्येष्ठामूली अमावास्या, पुष्ययुक्त पूर्णिमा के बाद आपाढा अमावास्या इत्यादि परस्पर समझलेना । - प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत-८ [५१] हे भगवंत् ! नक्षत्र संस्थिति किस प्रकार की है ? इन अठ्ठाइस नक्षत्रो में अभिजीत नक्षत्र का आकार गोशीर्ष की पंक्ति समान है; श्रवण काहार आकार का, घनिष्ठाशकुनीपलीनक आकार का, शतभिपा- पुष्पोपचार आकार का, पूर्वा और उत्तरा प्रोष्ठपदा - अर्द्धवापी आकार का, रेवती - नौका आकार का, अश्विनी अश्व के स्कन्ध आकार का, भरणी भगआकार

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