Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-१३/-/१०९ १७९ तीसरा, पांचवां, सातवां, नववां, ग्यारहवा और तेरहवां एवं पन्द्रहवें अर्धमंडल में वह तेरह सडसठांश भाग गमन करता है । चंद्र का यह पहला अयन पूर्ण हआ । जो नक्षत्र अर्धमास है वह चंद्र अर्धमास नहीं है और जो चंद्र अर्धमास है वह नक्षत्र अर्धमास नहीं है फिर नाक्षत्र अर्धमास का चंद्र चंद्र अर्धमास में तुल्य समय में कैसे गमन करता है ? एक अर्धमंडल में गमन करके चारसठ्यंश भाग एवं एकतीश सडसठांश भाग से छेद करके नव भाग से गमन करता है । दुसरे अयन में गमन करता चंद्र पूर्व भाग से निकलकर सात चोपन्न जाकर अन्य द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, सात तेरह जाकर फिर अपने द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, पश्चिम भाग से निकलकर छ-चौप्पन जाकर दुसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में और फिर छ तेरह जाकर स्वयंचिर्ण मार्ग में गमन करता है, दो तेरह जाकर कोई असामान्य मार्ग में गमन करता है । उस समय सर्व अभ्यंतर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में गमन करता है तब दो तेरह जाकर चंद्र किसी असामान्य मार्ग में स्वयमेव प्रवेश करके गमन करता है इस तरह दुसरा अयन पूर्ण होता है । . ____ चंद्र और नक्षत्र मास एक नहीं होते फिरभी तुल्य समय में चंद्र कैसे गमन करता है ? वह दो अर्द्धमंडल में गमन करते हुए आठ सडसठांश भाग अर्द्ध मंडल को इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अठारहवे भाग में द्वितीय अयन में प्रवेश करता हुआ चंद्र पश्चिम भाग से प्रवेश करता हुआ अनन्तर बाह्य पश्चिम के अर्द्धमंडल के एकचालीस सडसठांश भाग जाकर स्वयं अथवा दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करके तेरह सडसठांश भाग जाकर दुसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर स्वयं या परचिर्ण मार्ग में गमन करता है, इस तरह अनंतर ऐसे बाह्य पश्चिम मंडल को समाप्त करता है । तीसरे अयन में गया हुआ चंद्र पूर्व भाग से प्रवेश करते हुए बाह्य तृतीय पूर्व दिशा के अर्धमंडल को एकचालीश सड़सठांश भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है इतने में बाह्य तृतीयपूर्वीय मंडल समाप्त हो जाता है । वह तीसरे अयन को पूर्ण करके चंद्र पश्चिम भाग से बाह्य के चौथे पश्चिमी अर्द्धमंडल में आठ सडसठांश भाग के इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अठारह भाग जाकर स्वयं या दुसरे द्वारा चीर्ण मंडल में गमन करता है यावत् पूर्वोक्त गणित से बाह्य चौथा पश्चिमी अर्धमंडल को समाप्त करता है । इस प्रकार चंद्रमास में चंद्र चोप्पन भाग के तेरह भाग में दो तेरह भाग जाकर परचीर्ण मंडल में गमन करके, तेरह तेरह भाग जाकर स्वयं चीर्ण मंडल में गमन करके यावत् इसी तरह प्रतिचीर्ण करता है, यह हुआ चन्द्र का अभिगमन-निष्क्रमण-वृद्धि-निर्वृद्धि इत्यादि । प्राभृत-१३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण (प्राभृत-१४) [११०] हे भगवन् ! चंद्र का प्रकाश कब ज्यादा होता है ? शुक्ल पक्ष में ज्यादा होता है । कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में ज्यादा प्रकाश होता है । कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में आता हुआ

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242