________________
सूर्यप्रज्ञप्ति - १५/-/११३
की पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की चतुर्भाग न्यून पन्द्रह मंडल ।
ऋतु मासे में इन सवकी मंडल गति-चंद्र की चौदहमंडल एवं पन्द्रहवे मंडल में तीस एकसठांश भाग, सूर्य की पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की पन्द्रह मंडल एवं सोलहवे मंडल में पांच एक सो बावीशांश भाग है । आदित्य मास में इन की मंडलगति-चन्द्र की चौदह मंडल एवं पन्द्रहवें मंडल में ग्यारह पन्द्रहांश, सूर्य की सवा पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की पन्द्रहमंडल एवं सोलहवे मंडल का पैतीस एकसोवीशांश भाग है । अभिवर्धित मास में इनकी गति-चंद्र की पन्द्रह मंडल एवं सोलहवे मंडल में तेराशी एकसो छयासीअंश, सूर्य की त्रिभागन्यून सोलहवे मंडल में और नक्षत्रो की सोलह मंडल एवं सत्रह मंडल में सडतालीश चौदहसोअठ्ठासीअंश होती है ।
१८१
[११४] हे भगवन् ! एक-एक अहोरात्र में चंद्र कितने मंडलो में गमन करता है ? ९१५ से अर्धमंडल को विभक्त करके इकतीस भाग न्यून ऐसे मंडल में गति करता है, सूर्य एक अर्द्ध मंडल में गति करता है और नक्षत्र एक अर्द्धमंडल एवं अर्द्धमंडल को ७३२ से छेदकर दो भाग अधिक मंडल में गति करता है ।
एक एक मंडल में चंद्र दो अहोरात्र एवं एक अहोरात्र को ४४२ से छेद करके इकतीस भाग अधिकसे गमन करता है, सूर्य दो अहोरात्र से और नक्षत्र दो अहोरात्र एवं एक अहोरात्र को ३६७ से छेद करके दो भाग न्यून समय से गमन करता है। एक युग में चंद्र ८८४ मंडलो में, सूर्य ९१५ मंडल में और नक्षत्र १८३५ अर्धमंडलो में गति करता है । इस तरह गति का
वर्णन हुआ ।
प्राभृत- १६
[११५] हे भगवन् ! ज्योत्सना स्वरुप कैसे कहा है ? चंद्रलेश्या और ज्योत्सना दोनो एकार्थक शब्द है, एक लक्षणवाले है । सूर्यलेश्या और आतप भी एकार्थक और एक लक्षणवाले है । अन्धकार और छाया भी एकार्थक और एक लक्षणवाले है ।
प्राभृत- १७
[११६] हे भगवन् इनका च्यवन और उपपात कैसे कहा है ? इस विषय में पच्चीश प्रतिपत्तियां हैं - एक कहता है कि अनुसमय में चंद्र और सूर्य अन्यत्र च्यवते है, अन्यत्र उत्पन्न होते है... यावत्... अनुउत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में अन्यत्र च्यवते हैं- अन्यत्र उत्पन्न होते है । समस्त पाठ प्राभृत-छह के अनुसार समझ लेना । भगवंत फरमाते है कि वे चंद्र-सूर्य देव महाऋद्धि-महायुक्ति-महाबल- महायश महानुभाव-महासौख्यवाले तथा उत्तमवस्त्र उत्तममाल्य उत्तम आभरण के धारक और अव्यवच्छित्त नयानुसार स्व-स्व आयुष्य काल की समाप्ति होने पर ही पूर्वोत्पन्न का च्यवन होता है और नए उत्पन्न होते है ।
प्राभृत- १७- का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
प्राभृत- १८
[११७] हे भगवन् ! इन ज्योतिष्को की उंचाई किस प्रकार कही है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियां है-एक कहता है-भूमि से उपर एक हजार योजन में सूर्य स्थित है, चंद्र