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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषीछाया प्रमाण सोल अंगुल और अन्तिम दिन का त्रिपाद एवं चार अंगुल ।
ग्रीष्म के प्रथम याने चैत्र मास को उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर पूर्ण करते है, चैत्र मास की पौरुषी छाया का प्रमाण बारह अंगुल का है और उसके अन्तिम दिन में त्रिपाद प्रमाण पौरुषी होती है । वैशाख मास को चित्रा, स्वाति और विशाखा नक्षत्र चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषी छाया प्रमाण आठ अंगुल और अन्तिमदिन का दो पाद एवं आठ अंगुल । ज्येष्ठ मास को विशाखा, अनुराधा ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र क्रमशः चौदह, सात, आठ और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषी छाया प्रमाण चार अंगुल और अन्तिम दिने द्विपाद चार अंगुल पौरुषी । अषाढ मास को मूल, पूर्वा और उत्तराषाढा नक्षत्र चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते है, पौरुषीछाया प्रमाण वृत्ताकार, समचतुरस्त्र, न्यग्रोध परिमंडलाकार है और अन्तिमदिन को द्विपाद पौरुषी होती है ।
| प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-११ [५४] चन्द्र का गमन मार्ग किस प्रकार से है ? इन अठ्ठाइस नक्षत्रो में चंद्र को दक्षिण आदि दिशा से योग करनेवाले भिन्नभिन्न नक्षत्र इस प्रकार है-जो सदा चन्द्र की दक्षिणदिशा से व्यवस्थित होकर योग करते है ऐसे छह नक्षत्र है-मृगशिर्ष, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, हस्त और मूल । अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा-उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, पूर्वा-उत्तराफाल्गुनी और स्वाति यह बारह नक्षत्र सदा चंद्र की उत्तर दिशा से योग करते है । कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा और अनुराधा ये सात नक्षत्र चन्द्र के साथ दक्षिण और उत्तर दिशा से एवं प्रमर्दरूप योग करते है । पूर्वा और उत्तराषाढा चंद्र को दक्षिण से एवं प्रमर्दरूप योग करते है । यह सब सर्वबाह्य मंडल में योग करते थे, करते है, करेंगे । चन्द्र के साथ सदा प्रमर्द योग करता हुआ एक ही नक्षत्र है-ज्येष्ठा ।
[५५] चन्द्रमंडल कितने है ? पन्द्रह । इन चन्द्रमंडलो में ऐसे आठ चन्द्रमंडल है जो सदा नक्षत्र से अविरहित होते है-पहला, तीसरा, छठ्ठा, सातवां, आठवां, दसवां, ग्यारहवां और पन्द्रहवां । ऐसे सात चन्द्रमंडल है जो सदा नक्षत्र से विरहित होते है-दुसरा, चौथा, पांचवां, नववां, बारहवां, तेरहवां और चौदहवां । जो चन्द्रमंडल सूर्य-चन्द्र नक्षत्रो में साधारण हो ऐसे चार मंडल है-पहलां, दुसरा, ग्यारहवां और पन्द्रहवां । ऐसे पांच चन्द्रमंडल है, जो सदा सूर्य से विरहित होते है-छठे से लेकर दसवां ।
| प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-१२ | [५६] हे भगवन् ! इन नक्षत्रो के देवता के नाम किस प्रकार है ? इन अठ्ठावीस नक्षत्रो में अभिजीत नक्षत्र के ब्रह्म नामक देवता है, इसी प्रकार श्रवण के विष्णु, घनिष्ठा के वसुदेव, शतभिपा के वरुण, पूर्वाभाद्रपदा के अज, उत्तराभाद्रपदा के अभिवृद्धि, रेवती के पूष, अश्विनी के अश्व, भरणी के यम, कृतिका के अग्नि, रोहिणी के प्रजापति, मृगशिरा के सोम, आर्द्रा के रुद्रदेव, पुनर्वसू के अदिति, पुष्य के बृहस्पति, अश्लेषा के सर्प, मघा के पितृदेव, पूर्वा फाल्गुनी के भग, उत्तराफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सविष्ट, चित्रा के तक्ष, स्वाती के वायु,