Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 165
________________ १६४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- २ [४३] नक्षत्र का मुहूर्त्त प्रमाण किस तरह है ? भगवंत कहते है कि इन अठ्ठाइस नक्षत्रों में ऐसे भी नक्षत्र है, जो नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताइस सडसठ्ठांश भाग पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योग करते है । फिर पन्द्रह मुहूर्त्त से तीश मुहूर्त से ४५ मुहूर्त से चन्द्रमां से योग करनेवाले विभिन्न नक्षत्र भी है, वह इस प्रकार है-नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताइस सडसठ्ठांश भाग से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाला एक अभिजित नक्षत्र है; पन्द्रह मुहूर्त से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह है- शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा; तीस मुहूर्त से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाले पन्द्रह नक्षत्र है - श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढा ४५ मुहूर्त से चन्द्रमां के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह हैउत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । [४४] इन अठ्ठावीश नक्षत्रो में सूर्य के साथ योग करनेवाले नक्षत्र भी है । एक नक्षत्र ऐसा है जो सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त्त तक योग करता है - अभिजित; छह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ छह अहोरात्र एवं इक्किस मुहूर्त पर्यन्त योग करते है - शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा, पन्द्रह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त्त पर्यन्त योग करते है -श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगसिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढा; छह नक्षत्र ऐसे है जो सूर्य के साथ बीस अहोरात्र एवं तिन मुहूर्त्त तक योग करते है - उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा | प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत- ३ [४५] हे भगवंत्! अहोरात्र के भाग सम्बन्धी नक्षत्र कितने है ? इन अठ्ठाइस नक्षत्रो में छह नक्षत्र ऐसे है जो पूर्वभागा तथा समक्षेत्र कहलाते है, वे तीश मुहूर्त्त वाले होते है - पूर्वाप्रोष्ठपदा, कृतिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल और पूर्वाषाढा, दश नक्षत्र ऐसे है जो पश्चात भागा तथा समक्षेत्र कहलाते है, वे भी तीश मुहूर्त्तवाले है- अभिजित्, श्रवण, घनिष्टा, रेवती, अश्विनी, मृगशिर, पुष्य, हस्त, चित्रा और अनुराधा, छह नक्षत्र नक्तंभागा अर्थात् रात्रिगत तथा अर्द्धक्षेत्र वाले है, वे पन्द्रह मुहूर्त वाले होते है- शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा, छह नक्षत्र उभयंभागा अर्थात् दोढ क्षेत्र कहलाते है, वे ४५ मुहूर्तवाले होते है - उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसू, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । प्राभृत- १० - प्राभृतप्राभृत-४ [४६] नक्षत्रो के चंद्र के साथ योगका आदि कैसे प्रतिपादित किया है ? अभिजीत् और श्रवण ये दो नक्षत्र पश्चात् भागा समक्षेत्रा है, वे चन्द्रमा के साथ सातिरेक ऊनचालीश मुहूर्त योग करके रहते है अर्थात् एक रात्रि और सातिरेक एक दिन तक चन्द्र के साथ व्याप्त रह कर अनुपरिवर्तन करते है और शामको चंद्र धनिष्ठा के साथ योग करता है । घनिष्ठा नक्षत्र पश्चात् भाग में चंद्र के साथ योग करता है वह तीश मुहूर्त पर्यन्त अर्थात् एकरात्रि और बाद

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