________________
सूर्यप्रज्ञप्ति-१/५/२६
१५१ की कोइ भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति नहीं करता ।
इन पांच मतो में जो यह कहता है की ११३३ योजन परिमित द्वीप समुद्रो को व्याप्त करके सूर्य गति करता है, उनके कथन का हेतु यह है की जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब ११३३ योजन अवगाहीत करके गति करने के समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारहमुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है । जब सूर्य सर्वबाह्य मंडल के उपसंक्रमण करके गति करता है, तब लवण समुद्र को ११३३ योजन का अवगाहन करके गति करता है । उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारहमुहूर्त का दिन होता है । इसी प्रकार १३४ एवं १३५ योजन प्रमाण क्षेत्र के विषय में भी समझ लेना ।
__ जो अर्ध द्वीप-समुद्र के अवगाहन करके सूर्य की गति बतलाता है, उनका अभिप्राय यह है की सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके गति करता है तब अर्द्ध जम्बूद्वीप की अवगाहना करके गति करता है, उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी प्रकार सर्वबाह्यमंडल में भी समझना । विशेष यह कि लवणसमुद्र के अर्द्ध भाग को छोड़कर जब सूर्य अवगाहन करता है तब रात्रि दिन की व्यवस्था उसी प्रकार होती है । जिन मतवादी का कथन यह है कि सूर्य कीसी भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके गति नहीं करता उनके मतानुसार तब ही उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहुर्त प्रमाण दिन
और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । सर्व बाह्यमंडल के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार से समझना, विशेष यह कि लवणसमुद्र को अवगाहीत करके भी सूर्य गति नहीं करता । रात्रिदिन उसी प्रकार होते है ।
[२७] हे गौतम ! में इस विषय में यह कहता हूं कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वह जंबूद्वीप को १८० योजन से अवगाहीत करता है, उस समय प्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी तरह सर्वबाह्य मंडल में भी जानना । विशेष यह की लवण समुद्र में १३३ योजन क्षेत्र को अवगाहीत करता है । उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है ।
प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-६ [२८] हे भगवन् ! क्या सूर्य एक-एक रात्रिदिन में प्रविष्ट होकर गति करता है ? इस विपय में सात प्रतिपत्तियां है । जैसे की कोइ एक परमतवादी बताता है कि-दो योजन एवं बयालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजन के १८३ भाग क्षेत्र को एक-एक रात्रि में विकम्पीत करके सूर्य गति करता है । अन्य एक मत में यह प्रमाण अर्द्धतृतीय योजन कहा है । तीसरा कोई तिन भाग कम तिन योजन परिमित क्षेत्र में एक-एक रात्रि में सूर्य की गति बताता है। चौथा कोई यह प्रमाण तीन योजन और एक योजने के सैंतालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजनका १८३ भाग क्षेत्र का एक एक रात्रिदिन में विकम्पन करके सूर्य गति बताता है । पांचवा इस गति का प्रमाण अर्द्ध योजना का बताता है । छठ्ठा मतवादी चार भाग कम चार योजन प्रमाण कहता है और सातवां मतवादी कहता है की चार योजन तथा पांचवां अर्द्ध