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प्रज्ञापना- ३३/-/५८२
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के आकार का है । भगवन् ! अनुत्तरौपपातिकदेवों के अवधिज्ञान का आकार कैसा है ? गौतम ! यवनालिका के आकार का है ।
[५८३] भगवन् ! क्या नारक अवधि के अन्दर होते हैं, अथवा बाहर ? गौतम ! वे अन्दर होते हैं, बाहर नहीं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्च अवधि के बाहर होते हैं । मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों, नैरयिकों के समान है ।
भगवन् ! नास्कों का अवधिज्ञान देशावधि होता है अथवा सर्वावधि ? गौतम ! उनका अवधिज्ञान देशावधि होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अवधि भी देशावधि होता है, सर्वावधि नहीं । मनुष्यों का अवधिज्ञान देशावधि भी होता है, सर्वावधि भी होता है । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों, नारकों के समान जानना । भगवन् ! नारकों का अवधि क्या आनुगामिक होता है, अनानुगामिक होता है, वर्द्धमान होता है, हीयमान होता है, प्रतिपाती होता है, अप्रतिपाती होता है, अवस्थित होता है, अथवा अनवस्थित होता है ? गौतम ! वह अनुगामिक, अप्रतिपाती और अवस्थित होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अवधि आनुगामिक भी होता है, यावत् अनवस्थित भी होता है । इसी प्रकार मनुष्यों के अवधिज्ञान में समझलेना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को, नारकों के समान जानना ।
पद- ३४- “ प्रविचारणा"
[५८४] इस पदमें सात अधिकार है । अनन्तरागत आहार, आहाराभोगता आदि, पुद्गलों को नहीं जानते, अध्यवसान । तथा
[ ५८५ ] सम्यक्त्व का अभिगम, काय, स्पर्श, रूप, शब्द और मन से सम्बन्धित परिचारणा और अन्त में इनका अल्पबहुत्व ।
[५८६] भगवन् ! क्या नारक अनन्तराहारक होते हैं ?, उसके पश्चात् शरीर की निष्पत्ति होती है ? फिर पर्यादानता, तदनन्तर परिणामना होती है ? तत्पश्चात् परिचारणा करते हैं ? और तब विकुर्वणा करते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! क्या असुरकुमार भी अनन्तसहारक होते हैं ? यावत् परिचारणा करते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । इसी प्रकार स्तनितकुमारपर्यन्त कहना । भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक अनन्तराहारक यावत् विकुर्वणा करते है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । विशेष यह की वे विकुर्वणा नहीं करते । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियपर्यन्त कहना । विशेष यह कि वायुकायिक जीव, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्यों को नैरयिकों समान है । वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिकों, असुरकुमारों के समान जानना । [५८७] भगवन् ! नैरयिकों का आहार आभोग- निर्वर्तित होता है या अनाभोग - निर्वर्तित ? गौतम ! दोनो होता है । इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि एकेन्द्रिय जीवों का आहार अनाभोगनिवर्तित ही होता है । भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या वे उन्हें जानते हैं, देखते हैं और उनका आहार करते हैं, अथवा नहीं जानते, नहीं देखते हैं किंतु आहार करते हैं ? गौतम ! वे न जानते हैं और न देखते हैं, किन्तु उनका आहार करते हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय तक कहना । चतुरिन्द्रियजीव ?