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प्रज्ञापना-२८/२/५६३
जीव, गौतम ! आहारक होता है । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । बहुत्व की अपेक्षा से भी इसी प्रकार जानना ।
[५६४] भगवन् ! संयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित आहारक और कदाचित अनाहारक । इसी प्रकार मनुष्य को भी कहना । बहत्व की अपेक्षा से तीन-तीन भंग हैं । असंयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक । बहुत्व की अपेक्षा जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर इनमें तीन भंग होते हैं । संयतासंयतजीव, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्य, आहारक होते हैं । नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत जीव और सिद्ध, अनाहारक होते हैं ।
[५६५] भगवन् ! सकषाय जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । बहुत्व अपेक्षा से-जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर (सकषाय नारक आदि में) तीन भंग हैं । क्रोधकषायी जीव आदि में भी इसी प्रकार तीन भंग कहना । विशेष यह कि देवों में छह भंग कहना । मानकषायी और मायाकषायी देवों और नारकों में छह भंग पाये जाते हैं । लोभकषायी नैरयिकों में छह भंग होते हैं । जीव औ एकेन्द्रियों को छोड़ कर शेष जीवों में तीन भंग हैं। अकषायी को नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान जानना ।।
[५६६] ज्ञानी को सम्यग्दृष्टि के समान समझना । आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में छह भंग समझना । शेष जीव आदि में जिनमें ज्ञान होता है, उनमें तीन भंग हैं । अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च आहारक होते हैं । शेष जीव आदि में, जिनमें अवधिज्ञान पाया जाता है, उनमें तीन भंग हैं । मनःपर्यवज्ञानी समुच्चय जीव और मनुष्य आहारक होते हैं । केवलज्ञानी को नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान जानना । अज्ञानी, मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग हैं । विभंगज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्य आहारक होते हैं । अवशिष्ट जीव आदि में तीन भंग पाये जाते हैं ।
[५६७] सयोगियों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग हैं । मनोयोगी और वचनयोगी में सम्यगमिथ्यादृष्टि के समान कहना । विशेष यह कि वचनयोग विकलेन्द्रियों में भी कहना । काययोगी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग हैं । अयोगी समुच्चय जीव, मनुष्य और सिद्ध अनाहारक हैं ।
[५६८] समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर अन्य साकार एवं अनाकार उपयोगी जीवों में तीन भंग कहना । सिद्ध जीव अनाहारक ही होते हैं ।
[५६९] समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़ कर अन्य सब सवेदी जीवों के, स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी में, नपुंसकवेदी में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग होते हैं । अवेदी जीवों को केवलज्ञानी के समान कहना ।
[५७०] समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़ कर शेष जीवों में तीन भंग हैं । औदारिकशरीरी जीवों और मनुष्यों में तीन भंग हैं । शेष जीवों और औदारिकशरीरी आहारक होते हैं । किन्तु जिनके औदारिक शरीर होता है, उन्हीं को कहना । वैक्रियशरीरी और आहारकशरीरी आहारक होते हैं । किन्तु यह कथन वैक्रिय और आहारकशरीरी के लिए है ।