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प्रज्ञापना-१७/१/४४३
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अल्पशरीवाले हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं, यावत् निःश्वास छोड़ते हैं । वे कदाचित् आहार करते हैं, यावत् कदाचित् निःश्वसन करते हैं । इस हेतु से ऐसा कहा है कि नारक सभी समान आहाखाले यावत् समान निःश्वास वाले नहीं होते हैं ।
[४४४] भगवन् ! नैरयिक क्या सभी समान कर्मवाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकी-नारक दो प्रकार के हैं, पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अल्प कर्मवाले हैं और उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं ।
भगवन् ! क्या नैरयिक सभी समान वर्णवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकी-गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं । पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । जो पूर्वोपपत्रक हैं, वे अधिक विशुद्ध वर्णवाले होते हैं और जो पश्चादुपपन्नक होते हैं, वे अविशुद्ध वर्णवाले होते हैं । वर्ण के समान लेश्या से भी नारकों को विशुद्ध और अविशुद्ध जानना ।
भगवन् ! सभी नारक क्या समान वेदनावाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकी-गौतम नैरयिक दो प्रकार के हैं, संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत । जो संज्ञीभूत हैं, वे महान् वेदनावाले हैं और उनमें जो असंज्ञीभूत हैं, वे अल्पतर वेदनावाले हैं।
[४४५] भगवन् ! सभी नारक क्या समान क्रिया वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकी-गौतम ! नारक तीन प्रकार के हैं-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएँ होती हैं, आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया । जो मिथ्यादृष्टि तथा सम्यमिथ्यादृष्टि हैं, उनके नियत पांच क्रियाएँ होती हैं-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया और मिथ्यादर्शनप्रत्यया ।
भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्यवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। गौतम ! नैरयिक चार प्रकार के हैं, कई नारक समान आयुवाले और समान उत्पत्तिवाले होते हैं, कई समान आयुवाले, किन्तु विषम उत्पत्तिवाले होते हैं, कई विषम आयुवाले और एक साथ उत्पत्तिवाले होते हैं तथा कई विषम आयुवाले और विषम उत्पत्तिवाले होते हैं।
[४४६] भगवन् ! सभी असुरकुमार क्या समान आहार वाले हैं ? इत्यादि यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष कथन नैरयिकों के समान है । भगवन् ! सभी असुरकुमार समान कर्म वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकी-असुरकुमार दो प्रकार के हैं, -पूर्वोपपत्रक और पश्चादुपपन्नक । जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं । जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अल्पतरकर्म वाले हैं । इसी प्रकार वर्ण और लेश्या के लिए प्रश्न-गौतम ! असुरकुमारों में जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्धतर वर्णवाले हैं तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्णवाले हैं । इसी प्रकार लेश्या में कहना । (असुरकुमारों की) वेदना, क्रिया एवं आयु के विषय में नैरयिकों के समान कहना । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना ।
[४४७] पृथ्वीकायिकों के आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या के विषय में नैरयिको के समान कहना । भगवन् ! क्या सभी पृथ्वीकायिक समान वेदनावाले होते हैं ? हाँ गौतम ! होते हैं । क्योंकी सभी पृथ्वीकायिक असंज्ञी होते हैं । वे असंज्ञीभूत और अनियत वेदना वेदते है । भगवन् ! सभी पृथ्वीकायिक समान क्रियावाले होते हैं ? हाँ गौतम ! होते हैं । क्योंकी-सभी पृथ्वीकायिक मायी-मिथ्यादृष्टि होते हैं, उनके नियत रूप से पांचों क्रियाएँ होती हैं । पृथ्वीकायिकों के समान ही यावत् चतुरिन्द्रियों की वेदना और क्रिया कहना ।