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प्रज्ञापना-२१/-/५१६
असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों को भी वैक्रियशरीर होता है । असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों में गौतम ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक-असुरकुमार० को भी वैक्रियशरीर होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक जानना । इसी तरह आठ प्रकार के वाणव्यन्तर-देवों के (तथा) पांच प्रकार के ज्योतिष्क-देवों को भी जानना । वैमानिक-देव दो प्रकार के हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत । कल्पोपपन्न बारह प्रकार के हैं । उनके भी दो-दो भेद होते हैं । कल्पातीत वैमानिक देव दो प्रकार के है-ौवेयकवासी और अनुत्तरौपपातिक । ग्रैवेयक देव नौ प्रकार और अनुत्तरौपपातिक पांच प्रकार के । इन सबके पर्याप्तक और अपर्याप्तक से दो-दो भेद । इन सबके वैक्रियशरीर होता है ।
५१७] वैक्रियशरीर किस संस्थान वाला है ? गौतम ! नाना संस्थान वाला । वायुकायिक-एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान वाला है ? गौतम ! पताका आकार का। नैरयिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर, गौतम ! दो प्रकार का है, भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । दोनो हुंडकसंस्थान वाले है । रत्नप्रभापृथ्वी के नारक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर, गौतम ! दो प्रकार का है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । दोनो हुंडक-संस्थान वाले है । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी के नारकों तक समझना । तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर ? गौतम ! अनेक संस्थानों वाला है । इसी प्रकार जलचर, स्थलचर और खेचरों का संस्थान भी है । तथा स्थलचरों में चतुष्पद और परिसरों का वैक्रियशरीर का संस्थान भी ऐसा ही है । इसी तरह मनुष्य-पंचेन्द्रियों को भी जानना ।
असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का है ? गौतम ! असुरकुमार का शरीर दो प्रकार का है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । जो भवधारणीयशरीर है, वह समचतुरस्र-संस्थान वाला है, जो उत्तरवैक्रियशरीर है, वह अनेक प्रकार के संस्थान वाला है । इसी प्रकार नागकुमार से स्तनितकुमार पर्यन्त के भी वैक्रियशरीरों का संस्थान समझ लेना। इसी प्रकार वाणव्यन्तरदेवों को भी समझना । विशेष यह कि यहाँ औधिक-वाणव्यन्तरदेवों के सम्बन्ध में ही प्रश्न करना । वाणव्यन्तरों की तरह औधिक ज्योतिष्कदेवों के वैक्रियशरीर के संस्थान में भी समझना । इसी प्रकार सौधर्म से लेकर अच्युत कल्प में यहीं कहना । गौतम! ग्रैवेयकदेवों के एकमात्र भवधारणीय शरीर है और वह समचतुरस्रसंस्थान वाला है । इसी प्रकार पांच अनुत्तरौपपातिक-वैमानिकदेवों को भी जानना ।
. [५१८] वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट सातिरेक एक लाख योजन । वायुकायिक-एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की । नैरयिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! (वह) दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया । भवधारणीया-अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः पाँचसौ धनुष है तथा उत्तरवैक्रिया-अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः एक हजार धनुष है । रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया । भवधारणीया-शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्टतः सात धनुष, तीन रनि और छह अंगुल है । उत्तरवैक्रिया जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष ढाई रत्नि है । शर्कराप्रभा के नारकों की शरीरावगाहना गौतम !