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प्रज्ञापना-२३/२/५४१
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की है । इसी प्रकार मनुष्यायु में जानना । देवायु की स्थिति नरकायु के समान जानना । नरकगति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम । इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष है । तिर्यञ्चगति-नामकर्म की स्थिति नपुंसकवेद के समान है । मनुष्यगतिनामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के देढ सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम है । अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष है । भगवन् ! देवगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्रसागरोपम के एक सप्तमांश भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पुरुषवेद की स्थिति के तुल्य है ।
एकेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम । इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है । द्वीन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीशांशवें भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है । त्रीन्द्रिय-जातिनामकर्म की स्थिति ? जघन्य पूर्ववत् । उत्कृष्ट अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है । इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है । चतुरिन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न है । गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के नव पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट अठारह कोडाकोडी सागरोपम है । अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष है। पंचेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम है । अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है । औदारिक-शरीर-नामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार समझना । वैक्रियशरीर-नामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है । अबाधाकाल बीस वर्ष का है | आहारक-शरीर-नामकर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तः सागरोपम कोडाकोडी की है । तैजस और कार्मण-शरीर-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तमांश भाग की, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है । अबाधाकाल दो हजार वर्ष है । औदारिक०, वैक्रिय० और आहारकशरीररांगोपांग, नामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार है । पांचों शरीरबन्धन-नामकर्मों की स्थिति भी इसी प्रकार है ।
पांचों शरीरसंघात-नामकर्मों की स्थिति शरीर-नामकर्म की स्थिति के समान है । वज्रऋषभनाराचसंहनन-नामकर्म की स्थिति रति-नामकर्म के समान है । ऋषभनाराचसंहनननामकर्म की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के छह पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट बारह कोडाकोडी सागरोपम है अबाधाकाल बारह सौ वर्ष का है । नाराचसंहनन-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट चौदह कोडाकोडी सागरोपम की है । अबाधाकाल चौदह सौ वर्ष का है । अर्द्धनाराचसंहनन-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के आठ पैतीशांश भाग की, उत्कृष्ट सोलह कोडाकोडी सागरोपम की है । इसका