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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के साथ सहभाव समझ लेना । जिसके मायाप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके आगे की दो क्रियाएँ कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं, जिसके आगे की दो क्रियाएँ होती हैं, उसके मायाप्रत्ययाक्रिया नियम से होती है । जिसको अप्रत्याख्यानक्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं, जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यानक्रिया नियम से होती है |
नारक को प्रारम्भ की चार क्रियाएँ नियम से होती है । जिसके ये चार क्रियाएँ होती हैं, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया भजना से होती है, जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके ये चारों क्रियाएँ नियम से होती हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक में भी समझना । पृथ्वीकायिक से चतुरिन्द्रिय तक पांचों ही क्रियाएँ परस्पर नियम से होती हैं । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक को प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ परस्पर नियम से होती हैं । जिसको ये तीनों होती हैं, उसको आगे की दो विकल्प से होती हैं । जिसको, आगे की दोनों क्रियाएँ होती हैं, उसको ये तीनों नियम से होती हैं । जिसको अप्रत्याख्यानक्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया विकल्प से होती है, जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानक्रिया अवश्यमेव होती है । मनुष्य में सामान्य जीव के समान समझना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क
और वैमानिक देव में नैरयिक के समान समझना । जिस समय जीव के आरम्भिकीक्रिया होती है, उस समय पारिग्रहिकी क्रिया होती है ? क्रियाओं के परस्पर सहभाव के इस प्रकार जिस जीव के, जिस समय में, जिस देश में और जिस प्रदेश में यों चार दण्डकों के आलापक कहना । नैरयिकों के समान वैमानिकों तक समस्त देवों के विषय में कहना |
[५३१] भगवन् ! क्या जीवों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? हाँ, होता है । किस (विषय) में प्राणातिपातविरमण होता है ? गौतम ! षड् जीवनिकायों में होता है । भगवन् ! क्या नैरयिकों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि मनुष्यों का प्राणातिपातविरमण (सामान्य) जीवों के समान कहना । जीवों का मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण होता है ? हाँ, होता है । मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण गौतम ! सर्वद्रव्यों में होता है । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक मिथ्यादर्शनशल्य से विरमण का कथन करना । विशेष यह कि एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में यह नहीं होता ।
[५३२] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सप्तविध, अष्टविध, षट्विध अथवा एकविधबन्धक या अबन्धक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी कहना । भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! (१) समस्त जीव सप्तविध और एकविधबन्धक होते हैं । अथवा (१) अनेक सप्तविध-बन्धक अनेक एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक, (२) अनेक सप्तविधबन्धक, अनेक एकविधबन्धक और अनेक अष्टविधबन्धक, (३) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक, (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक तथा षड्विधबन्धक, (५) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक, (६) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अबन्धक होते हैं । इसी तरह अनेक सप्तविधबन्धक और अनेक