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प्रज्ञापना-१८/-/४८६
अनाहारक, छद्मस्थ-अनाहारक के रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय तक रहता है । केवली-अनाहारक दो प्रकार के हैं, सिद्धकेवली-अनाहारक और भवस्थकेवली-अनाहारक। सिद्धकेवली सादि-अपर्यवसित है । भवस्थकेवली-अनाहारक दो प्रकार के हैं-सयोगिभवस्थकेवली-अनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक । सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक उसी रूप में अजघन्य-अनुत्कृष्ट तीन समय तक रहता है । अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक उसी रूप में जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त तक रहता है ।।
[४८७] भगवन् ! भाषक जीव कितने काल तक भाषकरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त तक । अभाषक तीन प्रकार के हैं अनादि अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । उनमें से जो सादि-सपर्यवसित हैं, वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट वनस्पतिकालपर्यन्त अभाषकरूप में रहते हैं ।।
[४८८] परीत दो प्रकार के हैं । कायपरीत और संसारपरीत । कायपरीत जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पृथ्वीकाल तक, असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक उसी पर्याय में रहता है । संसारपरीत जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्त उसी पर्याय में रहता है । अपरीत दो प्रकार के हैं, काय-अपरीत और संसारअपरीत । काय-अपरीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक उसी पर्याय में रहता है । संसार-अपरीत दो प्रकार के हैं । अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । नोपरीतनोअपरीत सादि-अपर्यवसित है ।
[४८९] भगवन् ! पर्याप्त जीव कितने काल तक निरन्तर पर्याप्त-अवस्था में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपम पृथक्त्व तक । अपर्याप्त जीव ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त तक रहता है । नोपर्याप्त-नोअपर्याप्त जीव सादि-अपर्यवसित है ।
[४९०] भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्म-पर्यायवाला रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पृथ्वीकाल । बादर जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण रहता है । भगवन् ! नोसूक्ष्मनोबादर सादि-अपर्यवसित है ।
[४९१] भगवन् ! संज्ञी जीव कितने काल तक संज्ञीपर्याय में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्वकाल । असंज्ञी असंज्ञी पर्याय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी सादिअपर्यवसित है ।
[४९२] भगवन् ! भवसिद्धिक जीव कितने काल तक उसी पर्याय में रहता है ? गौतम ! वह अनादि-सपर्यवसित है । अभवसिद्धिक अनादि-अपर्यवसित है । नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक सादि-अपर्यवसित है ।
[४९३] धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायरूप में ? वह सर्वकाल रहता है । इसी प्रकार यावत् अद्धासमय भी समझना ।
[४९४] भगवन् चरमजीव ? गौतम ! (वह) अनादि-सपर्यवसित होता है । अचरम दो प्रकार के है, अनादि-अपर्यवसित और सादि-अपर्यवसित ।