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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
(पद-१९-"सम्यक्त्व" ) [४९५] भगवन् ! जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! तीनों । इसी प्रकार नैरयिक जीवों को भी जानना | असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों भी इसी प्रकार जानना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ? गौतम ! पृथ्वीकायिक मिथ्यादृष्टि ही होते हैं । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों को समझना । भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक कहना । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव में तीनो दृष्टि होते हैं । भगवन् ! सिद्ध जीव ? वे सम्यग्दृष्टि ही होते हैं ।
(पद-२०-"अन्तक्रिया" ) (४९६] अन्तक्रियासम्बन्धी १० द्वार-नैरयिकों की अन्तक्रिया, अनन्तरागत जीवअन्तक्रिया, एक समय में अन्तक्रिया, उद्धृत्त जीवों की उत्पत्ति, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, माण्डलिक और रत्नद्वार ।
[४९७] भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है । हाँ गौतम ! कोई जीव करता है और कोई नहीं करता । इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक तक की अन्तक्रिया में समझना । भगवन ! क्या नारक, नारकों में अन्तक्रिया करता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार नारक की वैमानिकों तक में अन्तक्रिया शक्य नहीं है । विशेष यह कि नारक मनुष्यों में आकर कोई अन्तक्रिया करता है और कोई नहीं करता । इसी प्रकार असुरकुमार से वैमानिक तक भी समझना । इसी प्रकार चौवीस दण्डकों में ५७६ (प्रश्नीत्तर) होते हैं ।
[४९८] भगवन् ! नारक क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा पराम्परागत ? गौतम ! दोनो । इसी प्रकार रत्नप्रभा से पंकप्रभा नरकभूमि के नारकों तक की अन्तक्रिया में समझना । धूमप्रभापृथ्वी के नारक ? हे गौतम ! (वे) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों में जानना । असुरकुमार से स्तनितकुमार तक तथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवो दोनो अन्तक्रिया करते हैं । तेजस्कायिक, वायुकायिक और विकलेन्द्रिय परम्परागत अन्तक्रिया ही करते हैं । शेष जीव दोनो अन्तक्रिया करते हैं ।
[४९९] भगवन् ! अनन्तरागत कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस । रत्नप्रभापृथ्वी यावत् वालुकाप्रभापृथ्वी के नारक भी इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं । भगवन् ! अनन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार। भगवन् ! अनन्तरागत कितने असुरकुमार एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट दस | भगवन् ! अनन्तरागत असुरकुमारियाँ ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट पांच अन्तक्रिया करती हैं । असुरकुमारों के समान स्तनितकुमारों तक ऐसे ही समझना ।
भगवन् ! कितने अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट चार । इसी प्रकार अप्कायिक चार, वनस्पतिकायिक