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प्रज्ञापना-१७/२/४५७
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हैं, उनसे नीललेश्यी विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्यी विशेषाधिक हैं, उनसे तेजोलेश्यी वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्यी वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्यी वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्यी विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्यी विशेषाधिक हैं, उनसे कापोतलेश्यी वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे नीललेश्यी विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्यी विशेषाधिक हैं; उनसे तेजोलेश्यी ज्योतिष्क देव संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्यी ज्योतिष्क देवियाँ संख्यातगुणी हैं ।
[४५८] भगवन् ! इन कृष्णलेश्यावाले, यावत् शुक्ललेश्यावाले जीवों में से कौन, किनसे अल्प ऋद्धिवाले अथवा महती ऋद्धि वाले होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्यी से नीललेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे कापोतलेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे तेजोलेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे पद्मलेश्यी महर्द्धिक हैं और उनसे शुक्ललेश्यी महर्द्धिक हैं । कृष्णलेश्यी सबसे अल्प ऋद्धिवाले हैं और शुक्ललेश्यी जीव सबसे महती ऋद्धिवाले हैं । भगवन् ! इन कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी और कापोतलेश्यी नारकों में ? गौतम ! कृष्णलेश्यी नारकों से नीललेश्यी नारक महर्द्धिक है, उनसे कापोतलेश्यी नारक महर्द्धिक हैं । कृष्णलेश्यी नारक सबसे अल्प ऋद्धिवाले और कापोतलेश्यी नारक सबसे महती ऋद्धिवाले हैं । भगवन् ! इस कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी तिर्यञ्चयोनिकों में ? गौतम ! समुच्चय जीवों के समान जानना ।
__ भगवन् ! कृष्णलेश्यावाले, यावत् तेजोलेश्यावाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में ? गौतम ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों से नीललेश्यी एकेन्द्रिय महर्द्धिक हैं, उनसे कापोतलेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे तेजोलेश्यी महर्द्धिक हैं । सबसे अल्पऋद्धिवाले कृष्णलेश्यी और सबसे महाऋद्धि वाले तेजोलेश्यी एकेन्द्रिय हैं । इसी प्रकार पृथ्वीकायिकों को जानना । इस प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जिनमें जितनी लेश्याएँ जिस क्रम से कही हैं, उसी क्रम से इस आलापक के अनुसार उनकी अल्पर्द्धिकता-महर्द्धिकता समझ लेना । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, तिर्यञ्चस्त्रियों, सम्मूर्छिमों और गर्भजों-सभी की कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्यापर्यन्त यावत् वैमानिक देवों में जो तेजोलेश्या वाले हैं, वे सबसे अल्पर्द्धिक हैं और जो शुक्ललेश्या वाले हैं, वे सबसे महर्द्धिक हैं, तक कहना । कई आचार्यों का कहना है कि चौबीस दण्डकों को लेकर ऋद्धि को कहना ।
| पद-१७ उद्देशक-३ [४५९] भगवन् ! नारक नारकों में उत्पन्न होता है, अथवा अनारक नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! नारक ही नारकों में उत्पन्न होता है । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों को कहना । भगवन् ! नारक नारकों से उद्धर्तन करता है, अथवा अनारक नारकों से उद्धर्तन करता है ? गौतम ! अनारक ही नारकों से उद्धर्तन करता है । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि ज्योतिप्कों और वैमानिकों के विषय में 'च्यवन' शब्दप्रयोग करना।
भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी नारक कृष्णलेश्यी नारकोंमें ही उत्पन्न होता है ? कृष्णलेश्यी (नारकों में से) उद्वृत्त होता है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । इसी प्रकार नीललेश्यी और कापोतलेश्यी में भी समझना । असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक भी इसी प्रकार कहना। विशेषता यह कि इनके सम्बन्ध में तेजोलेश्या का भी कथन करना । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी