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प्रज्ञापना-१७/४/४६४
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तपा कर धोया हुआ चांदी का पट्ट, शरद् ऋतु का बादल, कुमुद का पत्र, पुण्डरीक कमल का पत्र, चावलों के आटे का पिण्ड, कटुजपुष्पों की राशि,सिन्धुवारफूलों की माला, श्वेत अशोक, श्वेत कनेर अथवा श्वेत बन्धुजीवक हो, शुक्ललेश्या इनसे भी वर्ण में इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है । भगवन् ! ये छहों लेश्याएँ कितने वर्णों द्वारा कही जाती हैं ? गौतम ! (ये) पांच वर्णों वाली हैं । कृष्णलेश्या काले वर्ण से, नीललेश्या नीले वर्ण से, कापोतलेश्या काले
और लाल वर्ण से, तेजोलेश्या लाल वर्ण से, पद्मलेश्या पीले वर्ण से और शुक्ललेश्या श्वेत वर्ण द्वारा कही जाती है ।
[४६५] भगवन् ! कृष्णलेश्या आस्वाद (रस) से कैसी कही है ? गौतम ! जैसे कोई नीम, नीमसार, नीमछाल, नीमकाथ हो, अथवा कटुज, कटुजफल, कटुजछाल, कटुज का क्वाथ हो, अथवा कड़वी तुम्बी, कटुक तुम्बीफल, कड़वी ककड़ी, कड़वी ककड़ी का फल, देवदाली, देवदाली पुष्प, मृगवालुंकी, मृगवालुंकी का फल, कड़वी घोषातिकी, कड़वी घोषातिकीफल, कृष्णकन्द अथवा वज्रकन्द हो; भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या रस से इसी रूप की होती है ? कृष्णलेश्या स्वाद में इन से भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त अप्रिय, अमनोज्ञ और अतिशय अमनाम है । भगवन् ! नीललेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई भृगी, भृगी कण, पाठा, चविता, चित्रमूलक, पिप्पलीमूल, पीपल, पीपलचूर्ण, श्रृंगबेर, श्रृंगबेर चूर्ण हो; नीललेश्या रस में इससे भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अत्यधिक अमनाम है । भगवन् ! कापोतलेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई आम्रों, आम्राटकफलों, बिजौरों, बिल्वफलों, कवीठों, भट्ठों, पनसों, दाडिमों, पारावत, अखरोटों, बड़े बेरों, तिन्दुकोफलों, जो कि अपक्क हों, वर्ण, गन्ध और स्पर्श से रहित हों; कापोतलेश्या स्वाद में इनसे भी अनिष्टतर यावत् अत्यधिक अमनाम कही है।
भगवन ! तेजोलेश्या आस्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे किन्हीं आम्रों के यावत् तिन्दुकों के फल जो कि परिपक्व हों, परिपक्व अवस्था के प्रशस्त वर्ण से, गन्ध से और स्पर्श से युक्त हों, तेजोलेश्या स्वाद में इनसे भी इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है । भगवन् ! पद्मलेश्या का आस्वाद कैसा है ? गौतम ! जैसे कोई चन्द्रप्रभा मदिरा, मणिशलाका मद्य, श्रेष्ठ सीधु, उत्तम वारुणी, आसव, पुष्पों का आसव, फलों का आसव, चोय से बना आसव, मधु, मैरेयक, खजूर का सार, द्राक्षा सार, सुपक्क इक्षुरस, अष्टविध पिष्टों द्वारा तैयार की हए वस्तु, जामुन के फल की तरह स्वादिष्ट वस्तु, उत्तम प्रसन्ना मदिरा, जो अत्यन्त स्वादिष्ट, प्रचुररसयुक्त, रमणीय, झटपट ओठों से लगा ली जाए जो पीने के पश्चात् कुछ तीखी-सी हो, जो आंखों को ताम्रवर्ण की बना दे तथा विस्वादन उत्कृष्ट मादक हो, जो प्रशस्त वर्ण, गन्ध और स्पर्श से युक्त हो, जो आस्वादन योग्य हो, जो प्रीणनीय हो, बृंहणीय हो, उद्दीपन करने वाली, दर्पजनक, मदजनक तथा सभी इन्द्रियों और शरीर को आह्लादजनक हो, पद्मलेश्या स्वाद में इससे भी इष्टतर यावत् अत्यधिक मनाम है । भगवन् ! शुक्ललेश्या स्वाद में कैसी है ? गौतम ! जैसे गुड़, खांड, शक्कर, मिश्री, मत्स्यण्डी, पर्पटमोदक, भिसकन्द, पुष्पोत्तरमिष्ठान्न, पद्मोत्तरामिठाई, आदंशिका, सिद्धार्थका, आकाशस्फटिकोपमा अथवा अनुपमा नामक मिष्ठान्न हो; शुक्ललेश्या आस्वाद में इनसे भी इष्टतर, अधिक कान्त, प्रिय एवं अत्यधिक मनोज्ञ है ।
[४६६] भगवन् ! दुर्गन्ध वाली कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! तीन, कृष्ण यावत्