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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पूर्ववत् जानना । भगवन् ! अकर्मभूमिज कृष्णलेश्यी मनुष्य अकर्मभूमिज कृष्णलेश्यी स्त्री से अकर्मभूमिज कृष्णलेश्यी गर्भ को उत्पन्न करता है ? हाँ, गौतम ! करता है । विशेष यह कि इनमें चार लेश्याओं से कुल १६ आलापक होते हैं । इसी प्रकार अन्तरद्वीपज सम्बन्धी सोलह आलापक होते हैं ।
पद-१७-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-१८-'कायस्थिति') [४७१] जीव, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार ।
[४७२] भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव (सिद्धिक), अस्ति (काय) और चरम, इन पदों की कायस्थिति जानना ।
भगवन् ! जीव कितने काल तक जीवपर्याय में रहता है ? गौतम ! सदाकाल |
[४७३] भगवन् ! नारक नारकत्वरूप में कितने काल रहता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम । भगवन् ! तिर्यचयोनिक ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त
और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक । कालतः अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्यात पुद्गलपरावर्तनों तक, वे पुद्गलपरावर्तन आवलिका के असंख्यातवे भाग समझना । भगवन् ! तिर्यञ्चनी ? गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पृथक्त्वकोटि पूर्व अधिक तीन पल्योपम । मनुष्य और मानुषी की कायस्थिति में भी इसी प्रकार समझना।
भगवन् ! देव कितने काल तक देव बना रहता है ? गौतम ! नारक के समान ही देव के विषय में कहना । भगवन् ! देवी, देवी के पर्याय में कितने काल तक रहती है ? गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः पचपन पल्योपम । सिद्धजीव सादि-अनन्त होता है। भगवन् ! अपर्याप्त नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । इसी प्रकार यावत् देवी की अपर्याप्त अवस्था अन्तर्मुहूर्त ही है । पर्याप्त नारक जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम तक पर्याप्त नारकरूप में रहता है । पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिक जघन्य अन्तर्मुहुर्त तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम तक पर्याप्त तिर्यञ्चरूप में रहता है । इसी प्रकार पर्याप्त तिर्यञ्चनी में भी समझना । (पर्याप्त) मनुष्य और मानुषी में भी इसी प्रकार समझना । पर्याप्त देव में पर्याप्त नैरयिक के समान समझना । पर्याप्त देवी, पर्याप्त देवी के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम तक रहती है ।
[४७४] भगवन् ! सेन्द्रिय जीव सेन्द्रिय रूप में कितने काल रहता है । गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं-अनादि-अनन्त और अनादि-सान्त । भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकालवनस्पतिकालपर्यन्त । द्वीन्द्रिय जीव द्वीन्द्रियरूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में समझना । पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के रूप में जघन्यतः अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्टतः सहस्रसागरोपम से कुछ अधिक पंचेन्द्रिय रूप में रहता है । सिद्ध जीव कितने काल तक अनिन्द्रिय बना रहता है ? गौतम ! सादि-अनन्त ।