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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भगवन् ! वैमानिक देव कितने काल से उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं ? गौतम ! जघन्य मुहूर्तपृथक्त्व में और उत्कृष्ट तेतीस पक्ष में । सौधर्मकल्प के देव जघन्य मुहूर्तपृथक्त्व में, उत्कृष्ट दो पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । ईशानकल्प के देव के विषय में सौधर्मदेव से सातिरेक समझना | सनत्कुमार देव जघन्य दो पक्ष में और उत्कृष्टतः सात पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । माहेन्द्रकल्प में सनत्कुमार से सातिरेक जानना । ब्रह्मलोककल्पदेव जघन्य सात पक्षों में और उत्कृष्ट दस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । लान्तककल्पदेव जघन्य दस और उत्कृष्ट चौदह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । महाशुक्रकल्पदेव जघन्यतः चौदह
और उत्कृष्टतः सत्रह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । सहस्रारकल्पदेव जघन्य सत्रह और उत्कृष्ट अठारह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । आनतकल्पदेव जघन्य अठारह और उत्कृष्ट उन्नीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । प्राणतकल्पदेव जघन्यतः उन्नीस और उत्कृष्टतः बीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । आरणकल्पदेव जघन्यतः बीस और उत्कृष्टतः इक्कीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । अच्युतकल्पदेव जघन्यतः इक्कीस और उत्कृष्टतः बाईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं ।
भगवन् ! अधस्तन-अधस्तनौवेयक देव कितने काल से उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं ? गौतम ! जघन्यतः बाईस पक्षों में और उत्कृष्टतः तेईस पक्षों में । अधस्तन-मध्यमग्रैवेयक देव जघन्यतः तेईस और उत्कृष्टतः चौवीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयकदेव जघन्यतः चौवीस और उत्कृष्टतः पच्चीस पक्षों में उच्छ्वास, निःश्वास लेते हैं । मध्यम-अधस्तनौवेयक देव जघन्यतः पच्चीस और उत्कृष्टतः छव्वीस पक्षों में उच्छ्वास यावत् निःश्वास लेते हैं । मध्यम-मध्यमग्रैवेयकदेव जघन्यतः छव्वीस और उत्कृष्टतः सत्ताईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । मध्यमउपरितनग्रैवेयकदेव जघन्यतः सत्ताईस और उत्कृष्टतः अट्ठाईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । उपरितन-अधस्तनौवेयकदेव जघन्यतः अट्ठाईस और उत्कृष्टतः उनतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । उपरितन-मध्यमग्रैवेयकदेव जघन्यतः उनतीस और उत्कृष्टतः तीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । उपरितन-उपरितनग्रैवेयक देव जघन्यतः तीस और उत्कृष्टतः इकतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । अनुत्तरोपपातिक देव जघन्यतः इकतीस और उत्कृष्टतः तेतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । विशेष यह कि सर्वार्थ सिद्ध देवो का काल अजघन्योत्कृष्ट तेंतीस पक्ष का है । पद-७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-८ "संज्ञा") [३५४] भगवन् ! संज्ञाएँ कितनी हैं ? गौतम ! दस । आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, लोकसंज्ञा और ओघसंज्ञा । भगवन् ! नैरयिकों में कितनी संज्ञाएँ हैं ? हे गौतम ! पूर्ववत् दश । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक यावत् वैमानिक तक सभी जीवों में दस संज्ञाए है ।
[३५५] भगवन् ! नैरयिक कौन सी संज्ञावाले है ? गौतम ! बहुलता से बाह्य कारण की अपेक्षा वे भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं, (किन्तु) आन्तरिक अनुभवरूप से (वे) आहार-भयमैथुन और परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी हैं । भगवन् ! इन आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त,