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प्रज्ञापना - ११ /-/ ३८४
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की । क्रोधनिःसृता, माननिःसृता, मायानिःसृता, लोभनिःसृता, प्रेयनिःसृता, द्वेषनिःसृता, हास्यनिःसृता, भयनिःसृता, आख्यायिकानिःसृता और उपघातनिःसृता ।
[३८५] क्रोधनिःसृत, माननिःसृत, मायानिःसृत, लोभनिःसृत, प्रेयनिःसृत, द्वेषनिःसृत, हास्यनिःसृत, भयनिःसृत, आख्यायिकानिःसृत और दसवाँ उपघातनिःसृत असत्य ।
[३८६] भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की । सत्या - मृषा और असत्यामुषा । भगवन् ! सत्यामृषा अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की । उत्पन्नमिश्रिता, विगतमिश्रिता, उत्पन्न- विगतमिश्रिता, जीवमिश्रिता, अजीवमिश्रिता, जीवाजीवमिश्रिता, अनन्त - मिश्रिता, परित्तमिश्रिता, अद्धामिश्रिता और अद्धद्धामिश्रिता । भगवन् ! असत्यामृषा अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! बारह प्रकार की । यथा
[३८७-३८८] आमंत्रणी, आज्ञापनी, याचनी, पृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, इच्छानुलोमा, अनभिगृहीता, अभिगृहीता, संशयकरणी, व्याकृता और अव्याकृता भाषा ।
[३८९] भगवन् ! जीव भाषक हैं या अभाषक ? गौतम ! दोनो । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं । संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो असंसारसमापन्नक जीव हैं, वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं, जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के हैं- शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक । जो शैलेशीप्रतिपन्नक हैं, वे अभाषक हैं । जो अशैलेशीप्रतिपन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं । एकेन्द्रिय और अनेकेन्द्रिय । जो एकेन्द्रिय हैं, वे अभाषक हैं । जो अनेकेन्द्रिय हैं, वे दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जो अपर्याप्तक हैं, वे अभाषक हैं । जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं ।
भगवन् ! नैरयिक भाषक हैं या अभाषक । गौतम ! दोनो । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जो अपर्याप्तक हैं, वे अभाषक हैं और जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं । इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त सभी में समझना ।
[३९०] भगवन् ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार । सत्यभाषाजात, मृषाभाषाजात, सत्यामृषाभाषाजात और असत्यामृषाभाषाजात ।
भगवन् ! जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं, मृषाभाषा बोलते हैं, सत्यामृषाभाषा बोलते हैं अथवा असत्यामृषाभाषा बोलते हैं ? गौतम ! चारो भाषा बोलते है । भगवन् ! क्या नैरयिक सत्यभाषा बोलते हैं, यावत् असत्यामृषा भाषा बोलते हैं । गौतम ! चारो भाषा बोलते है । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक यहीं समझना । विकलेन्द्रिय जीव केवल असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ।
भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं ? यावत् क्या असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ? गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव सिर्फ एक असत्यामृषा भाषा बोलते हैं; सिवाय शिक्षापूर्वक अथवा उत्तरगुणलब्धि से वे चारो भाषा बोलते है । मनुष्यों से वैमानिकों तक की भाषा के विषय में औधिक जीवों के समान कहना ।
[३९१] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित