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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिकों के दो अवग्रह हैं । अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह ही है । पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह ही है । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक तक कहना। इसी प्रकार द्वीन्द्रियों के अवग्रह में समझना । विशेष यह कि द्वीन्द्रियों के व्यंजनावग्रह तथा अर्थावग्रह दो प्रकार के हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी समझना । विशेष यह है कि इन्द्रिय की परिवृद्धि होने से एक-एक व्यंजनावग्रह एवं अर्थावग्रह की भी वृद्धि कहना चाहिए । चतुरिन्द्रिय जीवों के व्यञ्जनावग्रह तीन प्रकार के और अर्थावग्रह चार प्रकार के हैं । वैमानिकों तक शेष समस्त जीवों के अवग्रह नैरयिकों के समान समझ लेना।
[४३७] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की कही हैं ? गौतम ! दो प्रकार की, द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रियाँ आठ प्रकार की हैं, दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा
और स्पर्शन । नैरयिकों को ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना । पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शनेन्द्रिय है । वनस्पतिकायिकों तक इसी प्रकार कहना । द्वीन्द्रिय को दो द्रव्येन्द्रियाँ हैं, स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय । त्रीन्द्रिय के चार द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन । चतुरिन्द्रिय जीवों के छह द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन । शेष सबके नैरयिकों की तरह आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहना ।।
भगवन् ! एक-एक नैरयिक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त । कितनी बद्ध हैं ? गौतम ! आठ । एक-एक नैरयिक की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं, सोलह हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं । एक-एक असुरकुमार के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं । पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं, नौ हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं । स्तनितकुमार तक इसी प्रकार कहना । पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में भी इसी प्रकार कहना । विशेषतः इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ एक मात्र स्पर्शनेन्द्रिय है । तेजस्कायिक और वायुकायिक में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि इनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नौ या दस होती हैं । द्वीन्द्रियों में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियों दो है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय में समझना विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ चार हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय में भी जानना । विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ छह हैं ।
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में असुरकुमार के समान समझना । विशेष यह कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी मनुष्य के होती हैं, किसी के नहीं होती । जिसके होती हैं, उसके आठ, नौ संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । सनत्कुमार यावत् अच्युत और ग्रैवेयक देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक के समान जानना । एकएक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । विजयादि चारों में से प्रत्येक की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं । और पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ, सोलह, चौबीस या संख्यात होती हैं । सर्वार्थसिद्ध देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध आठ और पुरस्कृत भी आठ होती हैं ।
भगवन् ! (बहुत-से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त ।