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प्रज्ञापना - १५/२/४३६
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बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? असंख्यात हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् (बहुत-से ) ग्रैवेयक देवों में समझना । विशेष यह कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं । ( बहुत-से ) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं । सर्वार्थसिद्ध देवों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं। (और) पुरस्कृत संख्यात हैं ।
भगवन् ! एक-एक नैरयिक की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । एक-एक नैरयिक की असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं । बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं । इसी प्रकार एक-एक नैरयिक की यावत् स्तनितकुमारपर्याय में कहना । भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं । पुरस्कृत किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी एक, दो, तीन या संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं । इसी प्रकार एक-एक नारक की यावत् वनस्पतिकायपन में कहना ।
भगवन् ! एक-एक नैरयिक की द्वीन्द्रियपन में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! अनन्त । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? नहीं हैं । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी दो, चार, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रियपन में समझना । विशेष यह कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ चार, आठ या बारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियपन में जानना । विशेष यह कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ छह, बारह, अठारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय में असुरकुमार समान कहना । मनुष्यपर्याय में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । मनुष्यों को छोड़ कर शेष सवकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ मनुष्यपन में किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, ऐसा नहीं कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म से लेकर ग्रैवेयक देव तक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत इन्द्रियाँ किसी की हैं, किसी की नहीं हैं । जिसकी हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं । एक नैरयिक की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित - देवत्व के रूप में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रिया नहीं है । पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं । सर्वार्थसिद्ध - देवपन में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं । नैरयिक के समान असुरकुमार के विषय में भी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक तक कहना । विशेष यह कि जिसकी स्वस्थान में जितनी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कही हैं, उसकी उतनी कहना ।