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प्रज्ञापना-१५/२/४३७
प्रकार असुरकुमारत्व यावत् स्तनितकुमारत्व के रूप में (अतीतादि भावेन्द्रियों को कहना ।) विशेष यह कि इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ नहीं हैं । (एक-एक नैरयिक की) पृथ्वीकायत्व से लेकर यावत् द्वीन्द्रियत्व के रूप में भावेन्द्रियों का द्रव्येन्द्रियों की तरह कहना । त्रीन्द्रियत्व के रूप में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ तीन, छह, नौ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियत्व रूप में भी कहना । विशेष यह कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ चार, आठ, बारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं । इस प्रकार ये (द्रव्येन्द्रियों के विषय में कथित) ही चार गम यहाँ समझना । विशेष-तृतीय गम में जिसकी जितनी भावेन्द्रियाँ हों, उतनी पुरस्कृत भावेन्द्रियों में समझना । चतुर्थ गम में जिस प्रकार सर्वार्थसिद्ध की सर्वार्थसिद्धत्व के रूप में कितनी भावेन्द्रियाँ अतीत हैं ? 'नहीं हैं ।' बद्ध भावेन्द्रियाँ संख्यात हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ नहीं हैं, यहाँ तक कहना ।
पद-१५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-१६-"प्रयोग") [४३८] भगवन् ! प्रयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का, सत्यमनःप्रयोग, असत्य मनःप्रयोग, सत्य-मृषा, मनःप्रयोग, असत्या-मृषा, मनःप्रयोग इसी प्रकार वचनप्रयोग, भी चार प्रकार का है, औदारिक शरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, आहारकशरीरकाय-प्रयोग, आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मण शरीरकाय-प्रयोग ।
[४३९] भगवन् ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार के, सत्यमनःप्रयोग से (लेकर) कार्मणशरीरकाय-प्रयोग तक । भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! ग्यारह प्रकार के, सत्यमनःप्रयोग से लेकर असत्यामृपावचन-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने प्रयोग हैं ? गौतम ! तीन, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग । इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक समझना । विशेष यह कि वायुकायिकों के पांच प्रकार के प्रयोग हैं, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग तथा कार्मणशरीरकाय-प्रयोग ।
भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! चार, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक समझना । भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! तेरह, सत्यमनःप्रयोग यावत् असत्यामृषामनःप्रयोग इसी तरह वचनप्रयोग,
औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग । भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! पन्द्रह, सत्यमनः-प्रयोग से लेकर कार्मणशरीरकाय-प्रयोग तक । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के प्रयोग के विषय में नैरयिकों के समान समझना।
[४४०] भगवन् ! जीव सत्यमनःप्रयोगी होते हैं अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी