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प्रज्ञापना - १३/-/ ४०६
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[४०६] भगवन् ! जीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दस प्रकार कागतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, योगपरिणाम, उपयोगपरिणाम, ज्ञानपरिणाम, दर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम और वेदपरिणाम ।
[४०७] भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार कानिरयगतिपरिणाम, तिर्यग्गतिपरिणाम, मनुष्यगतिपरिणाम और देवगतिपरिणाम । इन्द्रियपरिणाम पांच प्रकार का है - श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम, चक्षुरिन्द्रियपरिणाम, घ्राणेन्द्रियपरिणाम, जिह्वेन्द्रियपरिणाम और स्पर्शेन्द्रियपरिणाम । कषायपरिणाम चार प्रकार का है । क्रोधकषायपरिणाम, मानकषायपरिणाम, मायाकषायपरिणाम और लोभकषायपरिणाम । लेश्यापरिणाम छह प्रकार का है - कृष्णलेश्यापरिणाम, नीललेश्यापरिणाम, कापोतलेश्यापरिणाम, तेजोलेश्यापरिणाम, पद्मलेश्यापरिणाम और शुक्ललेश्यापरिणाम । योगपरिणाम तीन प्रकार का है - मनोयोगपरिणाम, वचनयोगपरिणाम और काययोगपरिणाम । उपयोगपरिणाम दो प्रकार का है-साकारोपयोगपरिणाम और अनाकारोपयोग परिणाम । ज्ञानपरिणाम पांच प्रकार का है-आभिनिबोधिकज्ञानपरिणाम, श्रुतज्ञानपरिणाम, अवधिज्ञानपरिणाम, मनः पर्यवज्ञानपरिणाम और केवलज्ञानपरिणाम । अज्ञानपरिणाम तीन प्रकार का है -मति - अज्ञानपरिणाम, श्रुत- अज्ञानपरिणाम और विभंगज्ञानपरिणाम । भगवन् ! दर्शनपरिणाम ? तीन प्रकार का है - सम्यग्दर्शनपरिणाम, मिथ्यादर्शनपरिणाम और सम्यग्मिथ्यादर्शनपरिणाम | चारित्रपरिणाम पांच प्रकार का हैसामायिकचारित्रपरिणाम, छेदोपस्थापनीयचारित्रपरिणाम, परिहारविशुद्धिचारित्रपरिणाम, सूक्ष्मसम्परायचारित्रपरिणाम और यथाख्यातचारित्रपरिणाम । वेदपरिणाम तीन प्रकार का है, स्त्रीवेदपरिणाम, पुरुषवेदपरिणाम और नपुंसकवेदपरिणाम ।
. नैरयिक जीव गतिपरिणाम से नरकगतिक इन्द्रियपरिणाम से पंचेन्द्रिय, कषायपरिणाम से क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, लेश्यापरिणाम से कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावान् हैं; योगपरिणाम से वे मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी हैं, उपयोगपरिणाम से साकारोपयोग और अनाकारोपयोग वाले हैं; ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञानी हैं, अज्ञानपरिणाम से मति, श्रुत और विभंगज्ञानी भी हैं; दर्शनपरिणाम से वे सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं; चारित्रपरिणाम से अचारित्री हैं; वेदपरिणाम से नपुंसकवेदी हैं । असुरकुमारों को भी इसी प्रकार जानना । विशेषता यह कि वे देवगतिक हैं; कृष्ण तथा नील, कापोत एवं तेजोलेश्यावाले भी होते हैं; वे स्त्रीवेदक और पुरुषवेदक भी हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना ।
पृथ्वीकायिकजीव गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगतिक हैं, इन्द्रियपरिणाम से एकेन्द्रिय हैं, शेष, नैरयिकों के समान समझना । विशेषता यह कि लेश्यापरिणाम से (ये) तेजोलेश्यावाले भी होते हैं। योगपरिणाम से काययोगी होते हैं, इनमें ज्ञानपरिणाम नहीं होता । अज्ञानपरिणाम से ये मति और श्रुत- अज्ञानी है; दर्शनपरिणाम से मिथ्यादृष्टि हैं, इसी प्रकार अप्कायिक एवं वनस्पतिकायिकों को (समझना ।) तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों इसी प्रकार है । विशेष यह है कि लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा नैरयिकों के समान कहना । द्वीन्द्रियजीव गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगतिक हैं, इन्द्रियपरिणाम से द्वीन्द्रिय हैं । शेष नैरयिकों की तरह समझना । विशेषता यह कि (वे) वचनयोगी भी होते हैं, काययोगी भी; ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिक ज्ञानी भी