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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद को छोड़कर चतुरिन्द्रियों तक जानना । वायुकायिकों में चार शरीर हैं, औदारिक, वैक्रिय, तैजस
और कार्मण शरीर । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में समझना । मनुष्यों के पांच शरीर हैं, औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के शरीरों नारकों की तरह कहना ।।
[४०१] भगवन् ! औदारिक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, काल से वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से वे असंख्यातलोक-प्रमाण हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं । काल से वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से—अनन्तलोकप्रमाण हैं । द्रव्यतः-मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं । भगवन् ! वैक्रिय शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के बद्ध और मुक्त, जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, कालतः वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणी-प्रमाण तथा प्रतर के असंख्यातवें भाग हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं । कालतः वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं; औदारिक शरीर के मुक्तों के समान वैक्रियशरीर के मुक्तों में भी कहना ।
____ भगवन् ! आहारक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते । यदि हों तो जघन्य एक, दो या तीन होते हैं, उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं । औदारिक शरीर के मुक्त के समान कहना। भगवन् ! तैजसशरीर कितने है ? गौतम ! दो प्रकार के बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे अनन्त हैं, कालतः-अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतःअनन्तलोकप्रमाण हैं, द्रव्यतः-सिद्धों से अनन्तगुणे तथा सर्वजीवों से अनन्तवें भाग कम हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं, कालतः वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः वे अनन्तलोकप्रमाण हैं । द्रव्यतः-(वे) समस्त जीवों से अनन्तगुणे हैं तथा जीववर्ग के अनन्तवें भाग हैं । इसी प्रकार कार्मणशरीर में भी कहना ।
[४०२] भगवन् ! नैरयिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। बद्ध औदारिकशरीर, उनके नहीं होते । मुक्त औदारिकशरीर अनन्त होते हैं, (औधिक)
औदारिक मुक्त शरीरों के समान (यहाँ नैरयिकों के मुक्त औदारिकशरीरों में) भी कहना चाहिए। भगवन् ! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । कालतः-असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं । क्षेत्रतःअसंख्यात श्रेणी-प्रमाण हैं । (श्रेणी) प्रतर का असंख्यातवां भाग है । उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल की दूसरे वर्गमूल से गुणित (करने पर निष्पन्न राशि जितनी) होती है अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के घन-प्रमाणमात्र श्रेणियों जितनी है तथा जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, उनके परिमाण के विषय में (नारकों के) •मुक्त औदारिक शरीर के समान कहना । नैरयिकों के आहारकशरीर दो प्रकार के हैं । बद्ध और मुक्त । (नारकों के)
औदारिक बद्ध और मुक्त के समान आहारकशरीरों के विषय में कहना । (नारकों के) तैजसकार्मण शरीर उन्हीं के वैक्रियशरीरो के समान कहना ।
[४०३] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! नैरयिकों के