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प्रज्ञापना-१०/-/३७२
द्रव्यप्रदेश इन दोनों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्रव्य से संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डल-संस्थान का एक अचरम सबसे अल्प है (उससे) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, अचरम और बहुवचनान्त चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरमान्तप्रदेश सबसे थोड़े हैं, (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों से-संख्यातप्रदेशी-संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे अल्प है, उनसे अनेक चरम संख्यातगुणे हैं, (उनसे) एक अचरम और अनेक चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं, चरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार की योजना वृत्त, यस्र, चतुरस्त्र और आयत संस्थान में कर लेना ।
__ भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान में पूर्ववत् अल्पबहुत्व-गौतम ! द्रव्य से असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे थोड़ा है, (उससे) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे एक अचरम
और अनेक चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरमान्तप्रदेश, सबसे कम हैं, (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों सेअसंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे कम है, (उनसे) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, (उनसे) एक अचरम और बहुत चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं, (उनसे) चरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार आयत तक के (चरमादि के अल्पबहुत्व के) विषय में (कथन करना चाहिए ।)
- भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान में पूर्ववत् अल्पबहुत्व-गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के चरमादि के अल्पबहुत्व के समान कहना । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना । भगवन् ! अनन्तप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के अल्पबहुत्व में संख्यातप्रदेशावगाढ़ संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान कहना । विशेष यह है कि संक्रम में अनन्तगुणे हैं । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक कहना । भगवन ! अनन्तप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान में रत्नप्रभापृथ्वी के चरम, अचरम आदि के समान समझ लेना । विशेषता यह है कि संक्रम में अनन्तगुणा है । इसी प्रकार यावत् आयतसंस्थान तक समझ लेना ।
[३७३] भगवन् ! जीव गतिचरम से चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित अचरम है । भगवन् ! (एक) नैरयिक गतिचरम से चरम है या अचरम ? गौतम! कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है । इसी प्रकार (एक) वैमानिक तक जानना । भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी। इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना ।
भगवन् ! (एक) नैरयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है । (एक) वैमानिक देव-पर्यन्त इसी प्रकार कहना ।