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प्रज्ञापना-१०/-/३६१
Tilbilimiliki 121119
(पद-१० "चरमाचरम") [३६१] भगवन् ! पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ? गौतम ! आठ पृथ्वियां हैं, रत्नप्रभा, शर्करप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा और ईषत्प्राग्भारा ।
भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अचरम है, अनेक चरमरूप है, अनेक अचरमरूप है, चरमान्त बहुप्रदेशरूप है अथवा अचरमान्त बहुप्रदेशरूप है ? गौतम ! नियमतः (वह) अचरम और अनेकचरमरूप है तथा चस्मान्त अनेकप्रदेशरूप और अचरमान्त अनेकप्रदेशरूप है । यों यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी तक कहना । सौधर्मादि लेकर यावत् अनुत्तर विमान तक और ईषत्प्राग्भारापृथ्वी इसी तरह समझना । लोक और अलोक में भी इसी तरह कहना ।
[३६२] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अचरम और बहुवचनान्त चरम, चस्मान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्यों, प्रदेशों से और द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्रव्य से इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है । उससे (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से 'चरमान्तप्रदेश' सबसे कम हैं । उनसे अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं । चस्मान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों से सबसे कम इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम है । उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों ही विशेषाधिक हैं । (उनसे) प्रदेशापेक्षया चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) असंख्यातगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार तमस्तमःपृथ्वी तक तथा सौधर्म से लेकर लोक ऐसा ही समझना ।
[३६३] भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्पबहुत्व-गौतम ! द्रव्य से सबसे कम अलोक का एक अचरम है । उससे असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से सबसे कम अलोक के चरमान्तप्रदेश हैं, उनसे अनन्तगुणे अचरमान्त प्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम अलोक का एक अचरम है । उससे बहुवचनान्त चरम असंख्यातगुणे हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । उनसे चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे भी अनन्तगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं ।
भगवन् ! लोकालोक के अचरम, (बहुवचनान्त) चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में अल्पबहुत्व-गौतम ! द्रव्य से सबसे कम लोकालोक का एक-एक अचरम है । उससे लोक के (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं, लोक और अलोक का अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । प्रदेशों से सबसे थोड़े लोक के चरमान्तप्रदेश हैं, अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, उनसे लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं । लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम लोक-अलोक का एक-एक अचरम है, उससे लोकके