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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यदि (वे) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज से ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दोनों से उत्पन्न होते हैं । यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा अकर्मभूमिज० से ? (गौतम !) नैरयिकों के उपपात समान वही (पृथ्वीकायिक आदि में समझना) विशेष यह कि अपर्याप्तक मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं ।
(भगवन् !) यदि देवों से उत्पन्न होते हैं, तो कौन से देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! भवनवासी यावत् वैमानिक देवों से । यदि भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं तो असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक से उत्पन्न होते हैं। । यदि वाणव्यन्तर देवों से उत्पन्न होते हैं, तो पिशाचों यावत् गन्धर्वो से उत्पन्न होते हैं । यदि ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं तो चन्द्र यावत् ताराविमान के देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से ही उत्पन्न होते हैं । यदि कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो सौधर्म और ईशान कल्प के देवों से ही उत्पन्न होते हैं ।
इसी प्रकार अप्कायिकों की उत्पत्ति में कहना । इसी प्रकार तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की उत्पत्ति में समझना । विशेष यह है कि यहां देवो का निषेध करना । वनस्पतिकायिकों की उत्पत्ति के विषय में, पृथ्वीकायिकों के समान जानना ।
[३३९] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति तेजस्कायिकों और वायुकायिकों के समान समझना ।
[३४०] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों से भी उत्पन्न होते हैं । यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं । यदि तिर्यञ्चयोकिं से उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? भगवन् ! यदि एकेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पृथ्वीकायिकों से यावत् वनस्पतिकायिकों से उत्पन्न होते हैं । गौतम ! पृथ्वीकायिकों के उपपात समान पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का उपपात कहना । विशेष यह कि यावत् सहस्रारकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से भी उत्पन्न होते हैं ।।
[३४१] भगवन् ! मनुष्य कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों से यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् तमःप्रभापृथ्वी तक के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अधःसप्तमीपृथ्वी के नहीं । यदि मनुष्य तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय आदि से उत्पन्न होते हैं ? पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपात समान मनुष्यों को भी कहना । विशेष यह कि (मनुष्य) अधःसप्तमीनरकपृथ्वी के नैरयिकों, तेजस्कायिकों और वायुकायिकों से उत्पन्न नहीं होते । उपपात सर्व देवों से कहना ।
[३४२] भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असुरकुमारों की उत्पत्ति के समान वाणव्यन्तर देवों की भी उत्पत्ति कहना ।
[३४३] भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों का उपपात असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्मूर्छिम असंख्यातवर्षायुष्क-खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यम्योनिकों को तथा अन्तर्दीपज मनुष्यों को छोड़कर कहना।
[३४४] भगवन् ! वैमानिक देव कहां से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों