Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका. ११० सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ६७
छाया-तत खलु स चित्रः सारथिः कञ्चुकिपुरुषस्य अन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हष्टतुष्ट-यावद् हृदयः कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति शब्दयित्वा, एवमवादीतक्षिप्रमेव भो देवानुपिया ! चातुर्घण्टम् अश्वरथ युक्तमेव उपस्थापयत यावत्सच्छत्रम् उपस्थापयन्ति । ततः खलु स चित्रः सारथिः स्नातः कृतबलिकर्मा कृतकौतुकमङ्गलपायश्चित्तः शुद्धप्रवेश्यानि मङ्गल्यानि वस्त्राणि प्रवरप.
'तएण से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अतिए एयमटुं' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तएणं से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अंतिए एयम सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियए कोडुबियपुरिसे सदावेइ) इसके बाद जब कि क'चुकी के मुख से इस अर्थ को सुना और उसका हृदय में विचार किया तब हृष्ट यावत् हृदय वाले होकर उस चित्रसारथिने कौटुम्बिकपुरुषोंआज्ञाकारी पुरुषों को बुलाया, (सहावित्ता एवं बयासी) बुलाकर उसने ऐसा कहा (खिल्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह) हे देवानुमियो ! आप लोग चातुर्घट-(चारघंटोवाले) अश्वरथ को घोडों से युक्त करके शीघ्र ही उपस्थित करो (जाव सच्छत्त उवट्ठवें ति) अपने स्वामी की इस प्रकार आज्ञा के वचन सुनकर यावत् उत्तम छत्र सहित अश्वरथ को उन्होंने लाकर उपस्थित कर दिया. (तएण से चित्ते सारही हाए कयबलिकम्मे, कयकोउयम गलपायच्छित्तो) रथ को उपस्थित हुआ जानकर चित्र साएथिने स्नान किया, बलिकर्म किया अर्थात काक
"त एणं से चित्ते सारही कचुइपुरिसस्स अंतिए एयम” इत्यादि
सूत्रार्थ:-(त एणं से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अंतिए एयम8 सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हिय ए कोडुविय पुरिसे सदावेइ) न्यायुमीना મુખથી આ બધી વિગત સાંભળી ત્યારે તેણે મનમાં વિચાર કર્યો અને હષ્ટ યાવત્ હદયવાળો થઈને તે ચિત્રસારથીએ કૌટુંબિક પુરૂષને–આજ્ઞાકારી પુરૂષને બેલાવ્યા. (सदावित्ता एव वयासी) मासावीन तभने म प्रमाणे . (खिरपामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटे आसरह जुत्तामेव उववेह) 3 हेवानुप्रिय ! ५ सौ सत्वरे यातुध (या२ धावा) अश्वथने Alord 3रीन सावा. (जाव सच्छत्तं उवहवें ति) पोताना स्वाभीनी प्रमाणे माझा सinीने यावत् तेभ ઉત્તમ છત્રસહિત અધરથ લાવીને ઉપસ્થિત કર્યો.
(त एण से चिते सारही पहाए कयवलिकम्मे, कयकोउयमंगलपायच्छित्तो) २थने यावेडो नन थिसारथिये स्नान ४यु, मसिभ यु भने स्वप्नना निवारा डौतु, भ६३५ प्रायश्चित्तनी विधिमा संपन्न ४२१. सुद्ध
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨