Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका. सू. १३२ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १९३ स्वामिन ! मुहूर्त के हस्तच्छिन्न वा यावत् जीविताद व्यपरापय यावत् तावद् अहमित्र ज्ञाति-निजक स्वजनसम्बन्धिपरिजनम् एवं वदामि-एवं खलु देवानुप्रिया! पापानि कर्माणि समाचर्य इमामेनपाम आपत्ति प्राप्नोमि, तत् मा खलु देवानुपिया! यूयमपि केचित् पापानि कर्माणि समाचरत, मा खलु यूयमपि एवमेव आपत्ति प्राप्नुत यथा खलु अह', तस्य खलु त्वं प्रदे. तुमं एवं वएजा-मा ताव मे सामी! मुहतगं हत्थच्छिण्णगं वा जीवियाओ ववरो वेहि जाव ताव अह मित्तणाइणि यगसयणसंबंधिपरियणं एवं क्यासी) इस प्रकार से प्रदेशी राजा का कथन सुनकर केशीश्रमणने उससे ऐसा कहा-हे प्रदेशिन् ! यदि वह तुमसे ऐसा कहे-हे स्वामिन ! आप थोडी देर तक ठहरिये. मेरे हाथ पैर न काटिये यावत मुझे जीवन से रहित न कीजिये, तब तक मैं मित्र, माता आदि ज्ञाति, स्वपुत्रादिक निजक, पितृव्यादि स्वजन श्वशुर आदिक सम्बधिजन, दासी दास आदि परिजन, इन सब से ऐसा कह दूं कि( एवं खलु देवाणुरिपया ? पावाईकम्माई समाचरेत्ता इमेपारूवं आवई पाविजामि) हे देवानुप्रियो! मैं पापकर्मों की समाचरित करके इस प्रकार की आपत्ति को पा रहा है (तमा ण देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केई पाराई कम्माई समायरइ) इसलिये हे देवानुप्रियो! आप लोग कोई
भी पापकर्म मत करना कि (मा ण में वि एवं चेव आवई पावेजाहिं य जहा णं अहं) जिससे तुमको भी ऐसी आपत्ति में पडना पडे, जैसा (अह णं पएसी ! से पुरिसे तुमं वदेज्जा मा ताव मे सामी! मुहुत्तगं हत्थ. च्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणं एवं वयामि) मा प्रभारी प्रदेशी रानु ४थन सांगीन કેશીકુમાર શ્રમણે તેમને કહ્યું કે હે પ્રદેશિન ! જે તમને આ પ્રમાણે કહે કે સ્વામિન! આપ થોડી વખત ભી જાવ. મારા હાથપગ કાપે નહિ યાવતું મને જીવન રહિત પણ બનાવે નહિ. હું મિત્ર, માતા, પિતા વગેરે જ્ઞાતિ, સ્વપુત્રાદિક નિજક પિતૃવ્યાદિ સ્વજન, શ્વશુર વગેરે સંબંધીજન, દાસદાસી વગેરે પરિજન આ બધાને मा प्रमाणे ही ' (एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाईकम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि) हे देवानुप्रिया !ई पा५४ोनु मायण ४ मा ततनी शिक्षा लागी २हो छु. (तं मा देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केइ पावाई कम्माई समायरइ) मेथी 3 वानुप्रियो तमे ५९
तनु पाप मायरता नहि. (माण भेवि एवं चेव आवड पावेज्जाहि य जहा " अह) थी तभने Alonal शिक्षा लागी ५3 केवी लागवी रह्यो छु
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨