Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका सू. १४३ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम २५९ तुच्छत्ते वा गुरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, जइ णं भते ! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्त मुयस्स वा तुलियस्स होज्जा केइ नाणत्ते वा जाव लहुयत्ते वा तो णं अहं सदहेजा तं चेव, जम्हा णं भंते ! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स मुयस्स वा तुलियस्त नत्थि केइ नन्नत्ते वा जाव लहुयत्ते वा तम्हा सुपइट्रियो मे पइण्णा जहा तं जीवो त चेव ॥सू० १४३ ॥
छाया-ततः खलु स प्रदेशी के शिकुमारश्रमणमेवमवादीत-अस्ति खलु भदन्त! यावत् नो उपागच्छति, एवं खलु भदन्त! यावद विहरामि, ततः खलु मम नगरगुप्तिकाः यावत् चोरमुपनयन्ति, ततः खल्लु अहं त पुरुषं जीवि तकमेव तोलयामि तोलयित्वा छविच्छेदम् अकुर्वाणः जीविताद् व्यपरोप
'तए णं से पएसी इत्यादि । सूत्रार्थ--(तए णं से पएसी केसिकमारसमणं एवं बयासी) इसके
बाद उस प्रदेशीने केशीकुमारश्रमण से ऐसा कहा-(अस्थि णं भंते ! जाव नो उवागच्छइ) हे भदन्त ! यह उपमा बुद्धि जन्य है अतः वास्तविक नहीं है. मुझे इस वक्ष्यमाण कारण से जीव और शरीर का भेद प्रतीत नहीं होता है (एव खलु भते ! जाव विहरामि) वह कारण इस प्रकार से है-एक दिन की बात है कि मैं गणनायक आदिकों के साथ बाह्य उपस्थानशाला में बैठा हुआ था. (तएणं मम जगरगुत्तिया जाव चोर उव. णेति) इतने में मेरे नगररक्षक साक्षियुक्त आदि विशेषण संपन्न किसी एक चोर को पकड कर ले आए (तए णं अहं तं पुरिसं जीवितगं चेव तुलेमि)
'तएणं से पएसी' इत्यादि।
सूत्रार्थ-तए णसे पएसी केसिकुमारसमणं एवं क्यासी) त्या२ पछी ते प्रदेश २ शी हुभा२ श्रमाने २मा प्रमाणे प्रयुं. (अस्थि णं भंते जाव नो उवागच्छइ) मत ! २मा ५मा मुद्धिन्य छ मेथी पास्तवि४ नथी. पक्ष्यभाए। ॥२४थी ७१ भने शरीरनी भिन्नता भा२१ भनभा onमती नथी. (एवं खलु भंते ! जाव विहरामि) ते २९ २॥ प्रमाणे छे- सिनी बात छे नाय वगेरेनी साथै मा ७५स्थान (महा२नी ४ये)मा मह तो. (तएणं मम णगरगुत्तिया जाव चोर उवणेति) ते मते भा॥ ना२२क्ष। साक्षियुत वगेरे विशेषणेथी सपन्न 5 मे या२ने ५४ी दाव्या. (त एणं अहं तं पुरिस'
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨